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221 2121 1221 212

बेख़ौफ़ सारी उम्र निकल जाये इस तरह

गिरने की बात हो न, संभल जाए इस तरह

 

तूफ़ान भी चले तो चरागा जला करे

दोनों ही अपनी राह बदल जाए इस तरह

 

हर सिम्त जिंदगी रहे, पुरजोश  बारहां

जो मौत का भी होश,बदल जाए इस तरह

 

फैले कहीं जो बाहें तो बच्चों सा दौड़कर

मिलने को हर इक शख्स मचल जाए इस तरह

 

आंसू किसी की आँखों का, हर आँख  से बहे 

इस शहर की फ़ज़ा भी बदल जाये इस तरह  

                    मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by बसंत नेमा on July 8, 2013 at 11:08am

बहुत सुन्दर .....बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 8, 2013 at 9:02am
""बेख़ौफ़सारी उम्र निकलजाये इस तरह

गिरने की बात हो न, संभल जाए इस तरह"".....वाह! बहुत खूब, आदरणीय..उम्दा गजल पर दाद कुबूलिए..

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