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कि इश्क सुन तिरे हवाले ताज करते हैं

कि इश्क सुन  तिरे हवाले ताज करते हैं
कि प्यार कल भी था तुझी से आज करते हैं

हुकूमतों का शोख़ रंग यह भी है यारों
कि हम जहाँ नहीं दिलों पे राज करते हैं

बहुत लगाव है हमें वतन की मिटटी से
इसी  पे जान दें इसी पे नाज़ करते हैं

नरम दिली नहीं समझते देश के दुश्मन
चलो कि आज हम गरम मिज़ाज करते 

मिरे वतन के फौज़ियों सलाम है मेरा
 तुझी से मान है तुझी पे नाज़ करते हैं 

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2013 at 12:56pm

संजू शब्दिता जी, आपकी ग़ज़ल बह्र और वज़्न के लिहाज़ से संयत है.  मतला थोड़ा और समय मांगता था.

वैसे, ग़ज़लकारों से अपेक्षा रहती है कि वे अपनी प्रस्तुति के साथ ग़ज़ल के मिसरों का वज़्न ग़ज़ल के साथ अवश्य प्रस्तुत करें. इससे सभी में अनुशासन आता है.

देशभक्ति या वतनपरस्ती के जज़्बे को आपने सुन्दर शब्द दिये हैं.

बधाई.. .

Comment by sanju shabdita on July 4, 2013 at 11:04am

आदरणीय ...आप सभी का बहुत -बहुत शुक्रिया

Comment by अमित वागर्थ on July 4, 2013 at 10:39am

ki hum jahan nahi dilon pe raj karte hai....wah..wah...wah...

Comment by D P Mathur on July 4, 2013 at 7:37am

आगाह करती , हौंसला बढ़ाती ,
फौजियो का सम्मान करती आपकी इस रचना के लिए बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

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