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हँसते मौसम कभी आते जाते रहे

2 1 2 2   1 2 2 1   2 2 1 2

हँसते मौसम यूँ ही आते जाते रहे
गम के मौसम में हम मुस्कुराते रहे

यादें परछाइयाँ बन गयीं आजकल
हमसफ़र हम उन्हें ही बताते रहे

कल तेरा नाम आया था होंठों पे यूँ
जैसे हम गैर पर हक़ जताते रहे

दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर
हम ही थे जो उसे आजमाते रहे

तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ
मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे

चल दिये हैं सफ़र में अकेले ही हम
साथ अपने ग़मों को बुलाते रहे

रूठ कर तुम गये सारा जग ले गये
चाँद तारे भी हमको चिढ़ाते रहे

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on September 1, 2013 at 2:57am

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है ...

दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर
हम ही थे जो उसे आजमाते रहे

तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ
मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे

वाह क्या बात है ...


जिस तरह आपने इतने कम समय में ग़ज़ल के मूलभूत नियमों को ग्रहण किया है वह काबिले तारीफ़ है ...

निश्चित ही आने वाले समय में आपकी कलम से हमें और भी ग़ज़लें पढ़ने को मिलेंगी ...

बधाई एवं शुभकामनाएं

Comment by sanju shabdita on August 27, 2013 at 8:58pm

adarniya brijesh ji aapka bahut-bahut shukriya

Comment by sanju shabdita on August 27, 2013 at 8:57pm

adarniya ashutosh ji aapka bahut shukriya

Comment by sanju shabdita on August 27, 2013 at 8:56pm

adarniyaa manjari ji bahut-bahut shukriya

Comment by sanju shabdita on August 27, 2013 at 8:55pm

adarniya kewal ji bahut-bahut aabhar

Comment by sanju shabdita on August 27, 2013 at 8:54pm

adarniya shijju ji aapka bahut shukriya

Comment by sanju shabdita on August 27, 2013 at 8:53pm

adarniya arun ji aapka hriday se bahut- bahut aabhar.

Comment by sanju shabdita on August 27, 2013 at 8:48pm

aadarniya saurabh sir sadar pranam..aapke aane me hi mai garv mahsoos karti hun,aur us par itne vistar se tippni..

mai to abhibhoot hu..mere paas shabd nahi ki shukriya ada kar sakun..aapki tippni mujhe kisi chamatkar se kam nahi lagti,kyonki jo cheezen mujhe pahle se hi kamjor lagti hai aap usi wor ishara bhi karte hai...mai dekhkar dang rah jaati hu..aur aapke kaushal ko pranam karti hu..aapke aashirvad se hi mai thoda-bahut ghazal ko samajhne lagi hu...koshis abhi bhi zaari hai..aapka aashirvad raha to aur behtar jaroor kar sakungi....aapki bahut-bahut aabhari


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 27, 2013 at 3:24am

हँसते मौसम कभी आते जाते रहे
गम के मौसम में हम मुस्कुराते रहे ... . उला में कभी का उचित प्रयोग नहीं हुआ है, संजूजी. सानी सही है. किन्तु मतले को और कढ़ा जा सकता था.

यादें परछाइयाँ बन गयीं आजकल
हमसफ़र हम उसे ही बताते रहे ..........  शुतुर्गुर्बा का ऐब हो गया है. यादें   के लिए उसे  कुछ जमा नहीं.

कल तेरा नाम आया था होंठों पे यूँ
जैसे हम गैर पर हक़ जताते रहे..........   इस बिम्ब में पकड़ है, बहुत खूब !

दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर
हम ही थे जो उसे आजमाते रहे ............वाह वाह !

तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ
मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे .............बढिया हुआ है यह शेर !

चल दिये हैं सफ़र में अकेले ही हम
साथ अपने ग़मों को बुलाते रहे ..............पता नहीं क्यों यह शेर बस यों ही सा लगा.

रूठ कर तुम गये सारा जग ले गये
चाँद तारे भी हमको चिढ़ाते रहे................यह एक विशिष्ट भावदशा है.

ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ. लेकिन तथ्य और कथ्य को और आयाम लेने दें.

शुभेच्छाएँ

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 26, 2013 at 4:09pm

वाह वाह वाह आदरणीया मजा आ गया क्या सुन्दर ग़ज़ल बन पड़ी है सभी के सभी अशआर बहुत ही सुन्दर हैं, इन दो अशआरों के लिए विशेष तौर पर दिली दाद कुबूल फरमाएं.

कल तेरा नाम आया था होंठों पे यूँ
जैसे हम गैर पर हक़ जताते रहे

तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ
मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे . वाह वाह

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