For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

//गजल//यह बारिशों का मौसम

 

2212122221212

 

यह बारिशों का मौसम, कितना हसीन है!

धरती गगन का संगम, कितना हसीन है!

 

जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार,

बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!

 

बच्चों के हाथ में हैं, कागज़ की किश्तियाँ,

फिर भीगने का ये क्रम, कितना हसीन है!

 

विहगों की रागिनी है, कोयल की कूक भी,

उपवन का रूप अनुपम, कितना हसीन है!

 

झूलों पे पींग भरतीं, इठलातीं तरुणियाँ,

लय तान का समागम, कितना हसीन है!

 

मित्रों का साथ हो तो, आनंद दो गुना,

नगमें सुनाता आलम, कितना हसीन है!

 

हर मन का मैल मेटे, सुखदाई मानसून,

हर मन का नेक हमदम, कितना हसीन है!

 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 775

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on June 20, 2013 at 6:04pm

आदरणीय, आशुतोष जी, आपकी जिज्ञासा का समुचित समाधान इस लिंक पर हो जाएगा। यहीं से ही मैंने भी सीखने की शुरुआत की। यह सब सब्र श्रम, लगन और लगातार अभ्यास से ही संभव है। एक दो शब्दों में बताना संभव नहीं। सादर

 

http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5...

 

आप इस समूह को ज्वाइन कर लें तो और बेहतर रहेगा।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 20, 2013 at 3:19pm

सादर बधाई के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 20, 2013 at 3:18pm

मात्राएँ गिनना हम अब सीख रहे हैं ..पहली पंक्ति में का  में एक मात्र इसलिए है क्या क्यूंकि का पर ज्याद स्ट्रेस नहीं पद रहा है या आर कोई बजह है ..हम चाहते हैं आप मात्राओं का आकलन अपने किन्ही दो शेरो के माध्यम से हमें समझाने का कसष्ट करें ..मैं समझ नहीं पा रहा हूँ की मुझसे गलती कहाँ हो रही है 

जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार,

बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!

और इस शेर में 

झूलों पे पींग भरतीं, इठलातीं तरुणियाँ,

लय तान का समागम, कितना हसीन है!

Comment by कल्पना रामानी on June 20, 2013 at 1:51pm

आदरणीय मित्रों-जितेंद्रजी, विजय जी, अमन जी,कुंती जी, वीनस जी,राम शिरोमणि जी,बृजेश जी, महिमा श्री जी, रचना को अपना हसीन स्नेह प्रदान करने  के लिए आप सबका हार्दिक आभार। यूँ ही आप सबका स्नेह बरसता रहे।   

Comment by MAHIMA SHREE on June 19, 2013 at 11:16pm

जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार,

बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!

 

बच्चों के हाथ में हैं, कागज़ की किश्तियाँ,

फिर भीगने का ये क्रम, कितना हसीन है!

 

फिर भीगने का ये क्रम, कितना !....वाह आदरणीया बहुत ही मनमोहक प्रस्तुति .. आपका हर एक  शेर हसीन है! !!! बधाई स्वीकार करें

Comment by बृजेश नीरज on June 19, 2013 at 10:56pm

बहुत ही सुन्दर! हिन्दी गजल के प्रतिमानों की स्थापना में आपका योगदान अतुलनीय है। आपके मेरी बधाई इस रचना के लिए।

Comment by ram shiromani pathak on June 19, 2013 at 10:03pm

आदरणीया कल्पना जी दमदार शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई //

Comment by वीनस केसरी on June 19, 2013 at 2:29pm

गीत के जैसी मधुर ग़ज़ल हो जाए तो आनंद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ...

और यहाँ तो विषय और रदीफ़ सब कुछ हसीन है ...

शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by कल्पना रामानी on June 17, 2013 at 11:13pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी, 'मेल'शब्द तो टंकण की त्रुटि से हो गया है। ठीक कर देती हूँ, लेकिन दूसरे शेर में क्या गड़बड़ है, स्पष्ट बताइये। पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2013 at 9:52pm

आ0 रामानी मैम जी, सुन्दर गजल हुई है।
जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार,
बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!
हर मन का मेल मेटे, सुखदाई मानसून,
हर मन का नेक हमदम, कितना हसीन है!..दोनों शे‘र फिर से देख लें। सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
4 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
8 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
9 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
15 hours ago
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
yesterday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
yesterday
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service