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वो खुदाया पास मेरे आ रही है (ग़ज़ल)

बहर --रमल मुसद्दस सालिम 

2122   2122   2122

 

उम्र जितनी तेज़ बढती जा रही है 

वो खुदाया पास मेरे आ  रही है 

 

राह में किस मोड़ पर हो जाए मिलना  

जिन्दगी ये सोचती सी  जा रही है 

 

क्या किसी तूफ़ान का संकेत है ये 

रेत  में बुलबुल नहा कर  जा रही है

 

जानते हैं  भाग्य अपना पीत  पत्ते

फ़स्ल देखो पतझड़ों की आ रही है  

 

खुल गयीं  हैं जुल्फ उसकी आज शायद 

वादियों में जो घटा सी  छा रही है 

 

बादलों में दूर इक परछाई आकर  

ख़ास कर क्यों  मुस्कुराती जा रही है 

 

क्या खबर किस  रोज़  सज जाएगा मंडप 

सोच दुल्हन पैरहन    सिलवा रही है  

 

लौट  जाएगा परिंदा नीड़  में फिर 

सोच कर क्यों झुरझुरी सी आ रही है 

 

जो अधूरे काम अब  वो पूर्ण कर ले 

'राज' फिर ये जिंदगानी जा रही  है  

************************************

(मौलिक अप्रकाशित )

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2013 at 9:13am

आदरणीय वीनस केसरी जी वो ग़ज़ल ही क्या जिस पर आपके द्वारा  चर्चा न हो ग़ज़ल में हुए आपके परामर्श का अगली बार ध्यान रखूंगी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2013 at 9:10am

प्रिय राम शिरोमणि पाठक  जी  ग़ज़ल आपको पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2013 at 9:08am

प्रिय महिमा श्री जी ग़ज़ल आपको पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2013 at 8:02am

मतले ने जो परवाज़ भरी आगे के शेर वो उठान नहीं पाये.. ऊँचे जा सकने का भरोसा जरूर दिला रहे हैं.

आज  बुलबुल  रेत  में नहा रही है..    ई का ?

सादर

Comment by वीनस केसरी on June 6, 2013 at 1:36am

मतले ने देर तक अपने पास रोके रखा
उम्दा शेर का क्या शानदार नमूना है कि जिस बात को कहा गया है उसका जिक्र ही नहीं है अर्थ के स्तर पर बेहद कामयाब ....
ढेरो दाद .....
दूसरा शेर पहले का चर्बा लगा, वही बात इससे अच्छे ढंग से मतले में कही जा चुकी है तो इस शेर की क्या ज़रूरत है 
बाकी सभी शेर पसंद आए

जबकि अलिफ़ को निभाने के लिहाज़ से कवाफ़ी का भण्डार मौजूद है, कुल ९ अशआर की ग़ज़ल में जा रदीफ़ का ४ अशआर में और का तीन अशआर में प्रयोग अनुचित तो नहीं है मगर ग़ज़ल के सौंदर्य को कम करता है 
एक शेर बहर से ख़ारिज है जिस पर संदीप जी पहले ही कह चुके हैं

सादर

Comment by ram shiromani pathak on June 6, 2013 at 12:04am

वाह आदरणीया सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुत की आपने!बधाई स्वीकार करें /सादर

Comment by MAHIMA SHREE on June 6, 2013 at 12:01am

आदरणीया राजेश दी , नमस्कार

वाह!! बहुत ही शानदार गजल ..बधाई स्वीकार करें /


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2013 at 9:46pm

प्रिय संदीप कुमार जी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से हर्षित हूँ ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2013 at 9:45pm

आदरणीय आबिद अली मंसूरी जी तहे दिल से आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 5, 2013 at 9:44pm

आदरणीय संदीप द्विवेदी जी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से हर्षित हूँ ग़ज़ल आपको पसंद आई एवं परामर्श के लिए हार्दिक आभार|

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