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तेरी यादोँ के सिलसिले!

तुझे पाने की जुस्तजू मेँ
तेरा एहसास लिए,
रोज लड़ता हूं मैँ
तन्हाइयोँ से अपनी,
चाहत की रहगुजर पर,
अक्सर दे जाते हैँ
ग़म की सौगात,
और हवा मेरे जख्मोँ को,
कितने संगदिल हैँ
यह
तेरी यादोँ के सिलसिले!
(मौलिक व अप्रकाशित)
__आबिद अली मंसूरी

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Comment by ram shiromani pathak on June 4, 2013 at 6:21pm

आदरणीय आबिद जी बहुत सुन्दर//////

Comment by Abid ali mansoori on June 4, 2013 at 6:16pm
आदरणीय श्याम जी और आदरणीय जितेन्द्र जी आप दोनोँ का हार्दिक आभार उत्साह वर्धन के लिए,मुझे आगे भी आपकी आलोचनाओँ एवं प्रतिक्रियाओँ की अपेक्षा रहेगी,एक बार पुनःधन्यवाद!
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 4, 2013 at 5:28pm
"वाह आदरणीय..आबिद साहब वाह! " तुझे पाने की जुस्तजू में तेरा एहसास लिए, रोज लड़ता हूँ तन्हाइयों से अपनी.... " बेहतरीन प्रस्तुति आबिद साहब....हार्दिक बधाईयां
Comment by Shyam Narain Verma on June 4, 2013 at 5:11pm

बहुत सुन्दर...

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