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!!! गजल !!!
वज्न- 2122, 2122, 2122, 212

अब वतन को लूटकर सिर कांटना क्या पीर है।
आम जनता रोज मरती शापता क्या पीर है।।

घूस खोरी या कमीशन खूब करते ठाठ से।
मुफलिसी का हाथ थामे रास्ता क्या पीर है।।1

जिन्दगी की डोर टूटी बम धमाका जोर से।
आदमी अब आदमी ना वासना क्या पीर है।।2

न्याय भी अब राग गाती या गरीबी-ताज हो।
जन्म का अधिकार कहती आत्मा क्या पीर है।।3

जेठ सूरज की नवाजिश वृक्ष जलकर मर रहे।
आश का पंछी पियासा चाहना क्या पीर है।।4

रात रोते चांद-तारें नींद पहरों पर अड़े।
दूब-शबनम रोज भटकें वास्ता क्या पीर है।।5

आप ‘सत्यम‘ बात लिखना आइना जो देख ले।
अब न नेता देश का है दोगला क्या पीर है।।6

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 28, 2013 at 8:03pm

आ0 अभिनव अरून भाई जी, आपका स्नेह और सराहना पाकर मन गदगद हो गया।  आप लोगों के सानिध्य में मैं गजल सीख पा रहा हूं।   यह मेरे लिए परमआनन्द और सौभाग्य की बात है।  आपका तहेदिल से हार्दिक आभार। सादर,

Comment by Shyam Narain Verma on May 28, 2013 at 4:18pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 28, 2013 at 3:38pm

अति सुंदर रचना केवल जी बहुत बधाई 

Comment by coontee mukerji on May 28, 2013 at 1:22pm

केवल प्रसाद जी , कई दिनों के बाद आपकी सुंदर रचना पढ़ने  को मिला .

जेठ सूरज की नवाजिश वृक्ष जलकर मर रहे।
आश का पंछी पियासा चाहना क्या पीर है।।4

रात रोते चांद-तारें नींद पहरों पर अड़े।
दूब-शबनम रोज भटकें वास्ता क्या पीर है।।5.............हमेशा  की तरह ...झूठ को नकारते सच्चाई  का नकाब उठाती ...........अति सुंदर

सादर / कुंती

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on May 27, 2013 at 10:51pm

बढ़िया ग़ज़ल हुई भाई सत्यम जी
बधाइयाँ !!

Comment by Abhinav Arun on May 27, 2013 at 9:28pm
श्री केवल जी अच्छे शेर हुए हैं हार्दिक बधाई - इस सशक्त ग़ज़ल पर -

जेठ सूरज की नवाजिश वृक्ष जलकर मर रहे।
आश का पंछी पियासा चाहना क्या पीर है

उम्दा !!

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