For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

!!! कुण्डलियां !!!

तपता सूरज देख कर, मौसम है बेहाल।
तरू, उपवन, जन ताप से, नित.नित हुए हलाल।।
नित.नित हुए हलाल, निरूत्तर ठगे खडे़ हैं।
निर्वस्त्रहि भी ढाल, धर्म में डटे अड़े है।।
अब कालहु का काल, इन्द्र भगवन को जपता।
धरा करे चित्कार, जेठ सूरज सा तपता।।

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

Views: 777

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2013 at 9:29pm

आ0  राजेश भाई जी,  आपका कथन उचित ही है, उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2013 at 9:24pm

आ0 रक्ताले सर जी, आपका कथन उपयुक्त ही है, सर जी!
तरू उपवन जन ताप से, नित.नित हुए हलाल।।....तरु टंकण त्रुटी है.यदि यहाँ वन लिखते तो उचित होता’जन.ताप’ वरना इसका अर्थ आप के कहे से भिन्न हो रहा है।....आप बिलकुल सही हैं।
नित.नित हुए हलाल...’नित-नित’ ‘नित-नित‘ करें...ऐसा ही है।
निर्वस्त्रहि भी ढाल....’निर्वस्त्रहि भी ढाल’ का क्या अर्थ समझें?.....बिना पत्तों के बृक्ष और गर्मी से बेहाल अर्धनग्न व्यक्ति से आशय है।
अब कालहु का काल.. ’काल को का काल’ उचित नहीं है...’कालों का काल‘ से आशय है
‘जेठ सूरज सा तपता‘ आपके द्वारा जिस तरह प्रयोग किया गया है उचित नहीं लगता..जी! जेठ सूरज ज्यों तपता। आपके उत्तम सुझावों के लिए आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 17, 2013 at 4:21pm

तपता सूरज देख कर, मौसम है बेहाल।
तरू, उपवन, जन ताप से, नित.नित हुए हलाल।।…….”तरु” टंकण त्रुटी है.यदि यहाँ वन लिखते तो उचित होता,”जन-ताप” वरना इसका अर्थ आप के कहे से भिन्न हो रहा है. 

नित.नित हुए हलाल, निरूत्तर ठगे खडे़ हैं।....... “नित.नित” “नित-नित” करें. 
निर्वस्त्रहि भी ढाल, धर्म में डटे अड़े है।।.........”निर्वस्त्रहि भी ढाल” का क्या अर्थ समझें?        
अब कालहु का काल, इन्द्र भगवन को जपता। “कालहु का काल” “काल को का काल” उचित नहीं है.
धरा करे चित्कार, जेठ सूरज सा तपता।।   “जेठ सूरज सा तपता” आपके द्वारा जिस तरह प्रयोग किया गया है उचित नहीं लगता.

आदरणीय केवल प्रसाद जी क्षमा करें किन्तु मुझे लगता है छंद में काफी सुधार की जरुरत है.सादर,

Comment by राजेश 'मृदु' on June 17, 2013 at 1:22pm

उत्‍तम रचना के लिए हार्दिक बधाई, मात्रा वाली रचना में मुश्किल आती ही है, ना चाहते हुए भी कुछ ना कुछ छूट जाता है । लेकिन यात्रा जारी रहे, बहुत  बधाई

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2013 at 10:30pm

आ0 कुन्ती जी,    उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2013 at 10:30pm

आ0 रामशिरोमणि भाई जी,    उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2013 at 10:28pm

आ0 विजयाश्री जी,    उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2013 at 10:27pm

आ0 अरून शर्मा भाई जी,   जी!  संशय में ध्यान भटक गया.....3+3+2+3+2  विषम पदों की रचना होती है।  समुचित मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2013 at 10:15pm

आ0 श्याम नारायण जी, उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by coontee mukerji on June 15, 2013 at 6:44pm

बहुत सुंदर  रचना केवल प्रसाद जी ...सादर / कुंती

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
19 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service