For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -प्रेमिका के हाथ की तुरपाइयाँ !

ग़ज़ल :-

एक पर्वत और दस दस खाइयां |
हैं सतह पर सैकड़ों सच्चाइयां ।

हादसे द्योतक हैं बढ़ते ह्रास के ,
सभ्यता पर जम गयी हैं काइयाँ 

भाषणों में नेक नीयत के निबन्ध ,
आचरण में आड़ी तिरछी पाइयाँ 

मंदिरों के द्वार पर भिक्षुक कई ,
सच के चेहरे की उजागर झाइयाँ 

आते ही खिचड़ी के याद आये बहुत ,
माँ तेरे हाथों के लड्डू लाइयाँ 

कैरियर की फ़िक्र में माँ बाप हैं ,
पालती बच्चों को पन्ना धाइयाँ 

पल रहे फुटपाथ पर बच्चे हुजूर ,
कहते भी हैं जाको राखे साइयाँ 

शहर दिल्ली में लुटी एक दामिनी ,
आ गयीं सौ सामने  सच्चाइयां ।

ये सियासत थी कभी सेवा मियां ,
अब कहाँ पहले सी वो ऊचाइयां |

अब किसी रुमाल में मिलती नहीं ,
प्रेमिका के हाथ की तुरपाइयाँ |

आज जन जन के ह्रदय में राम हैं ,
भा गयीं तुलसी तेरी चौपाइयां ।

           (c) ABHINAV ARUN 

                  {01022013}

Views: 926

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Thakur on July 5, 2013 at 11:32am

kya gazal sunai hai bhai abhinav jee. waah. dil se lakho badhaiyan.mubark

Comment by Abhinav Arun on June 9, 2013 at 6:25pm

   परम आभार आदरणीय !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 4, 2013 at 4:46pm

तो यह कैसे समझ लिया कि शुभेच्छाओं में दायाँ-बायाँ भी होता है.. .

हमारी ओर से कभी कुछ नहीं बदलना.. . जो थे, हैं

शुभम्

Comment by Abhinav Arun on June 4, 2013 at 2:55pm

कुछ ख़ास नहीं आदरणीय !! आपकी शुभेच्छाएं नित चाहिए आभार सहित !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2013 at 10:44pm

भाईजी, पता नहीं क्या लिख गये हैं आप. मुझे तो कुछ समझ में नहीं आया. न कारण समझ में आया. स्नेह में कमी.. बहुत से संकेत.. दिल मुश्किल.. क्या साहब, क्या है ये सब ? क्या कह रहे हैं .. . मुझे वाकई कुछ पल्ले नहीं पडा आपकी इस रचना से..

भाईजी, हम सभी रचना और रचनाधर्मिता के कारण सोद्येश्य हैं. वैयक्तिकता इसके बाद की व्यवस्थित इकाई है.

शुभेच्छाएँ

Comment by Abhinav Arun on June 3, 2013 at 9:17pm

आदरणीय श्री , आशीष वर्षा हुई  देर से ही सही परम आभार और सादर प्रणाम !!  स्नेह में कभी कभी  कमी हो जाती है .. इसे अनुज की हक हुकूक और अख्तियारात वाली शिकायत समझे .. । डर नहीं ... मैं आपके बहुत से संकेतों को एक अपने की तरह लेता हूँ .. हाँ परिश्रम के सन्दर्भ में मेरी भी सीमा है दिमाग और समय दोनों सन्दर्भों में .. पर गुंजाईश रहे की मिले तो दिलखोल कर और ख़ुशी वाले पल हों .. झिलमिल सितारों के आँगन जैसा :-) चार दिन की जिंदगानी में दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं जितने बनाए और निभाये जाए अच्छा होगा न वर्ना हम सब अपनी परिधियों खांचो और साँचो से क्या कम दबे है ... मैं अब भी कहता हूँ आदमी अच्छा हो रचनाकार थोडा कम हो तो खराब आदमी और बेहतरीन रचनाकार से अच्छा है । फिर मिलेंगे अगर खुदा  लाया !! सादर साधिकार और सहृदयता सहित ..अरुण !!

Comment by Abhinav Arun on June 3, 2013 at 9:08pm

श्री विजय जी बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आपका 

Comment by Abhinav Arun on June 3, 2013 at 9:08pm

एडमिन महोदय आभार आपका संशोधन व् ज्ञानवर्धन के लिए !!

Comment by Abhinav Arun on June 3, 2013 at 9:07pm

आदरणीय श्री अशोक जी आपके चुने शेर मुझे भी दिल के बेहद  लगते हैं बहुत आभार आदरणीय साधुवाद !!

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 3, 2013 at 12:01am

वाह! आदरणीय अभिनव अरुण जी हर शेर सीधे दिल में उतर रहा है, जब आप कहते हैं

आते ही खिचड़ी के याद आये बहुत ,
माँ तेरे हाथों के लड्डू लाइयाँ  ।............बस भाव देखते ही बनते हैं 

कैरियर की फ़िक्र में माँ बाप हैं ,
पालती बच्चों को पन्ना धाइयाँ  ।..........इंसान के दोहरे चरित्र को खूब उजागर किया है आपने.

पल रहे फुटपाथ पर बच्चे हुजूर ,
कहते भी हैं जाको राखे साइयाँ ।..........वाह! भरपूर दाद कुबूल करें |

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
10 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
14 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service