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ग़ज़ल "बह रही गंगा अजल से पापियों के वास्ते"

हो गये सब सर कलम कुछ रोटियों के वास्ते 
जैसे उगते हों शज़र बस आरियों के वास्ते 

दौरे वहशत पूछिए मत, बढ़ रही कैसी हवस 
है परेशां बाप अपनी बच्चियों के वास्ते 

कुछ निवाले छीन लेते हैं गरीबों से भले 
रोज़ दाना लाएं साहब मछलियों के वास्ते 

देश के रक्षक उगाते बेच कर ईमान अब 
नोट की फसलें सियासी इल्लियों के वास्ते 

दौर है रफ़्तार का, फुर्सत नहीं खुद के लिए 
व्यस्त हैं सब कागज़ी कुछ चिन्दियों के वास्ते 

मुल्क की तस्वीर से फिर साजिशी बू आ रही

खुल रहे स्कूल इंग्लिश हिंदियों के वास्ते


कोख में ही मार डालीं, बाप ने सब बच्चियाँ 
मां तरसती रह गई किलकारियों के वास्ते 

क्यूँ गुनाहों से करे तौबा कोई भी “दीप” जब

बह रही गंगा अजल से पापियों के वास्ते

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:22am

आदरणीय अरुण भाई जी 

आपकी इस तरह दाद पाकर ग़ज़ल कहना सार्थक हुआ 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

सादर आभार आपका 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:20am

आदरणीय सौरभ सर जी सादर प्रणाम 

आपकी सराहना पाकर मन प्रसन्न है ग़ज़ल कहना सार्थक हुआ 

पर्याप्त समय न दे पाने के लिए क्षमा चाहता हूँ 

स्नेह और आशीष बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:17am

आदरणीय राजेश झा सर जी सादर आभार आपका 

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:17am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी 

ग़ज़ल को सराहने हेतु सादर आभार आपका 

स्नेह बनाये रखिये 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:16am

आदरणीय विजय मिश्र जी 

इस सराहना और उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:15am

आदरणीय सुजान जी 

हौसलाफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 26, 2013 at 12:14am

आदरणीय राज जी 

सराहना हेतु सादर आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 24, 2013 at 8:15am

सुन्दर गजल आदरणीय संदीप जी.

Comment by वेदिका on May 22, 2013 at 11:32pm

अरे वाह वाह संदीप जी! क्या जोरदार गजल लिखी है आपने तो ....बहुत सारी शुभकामनाएँ कुबुलिये 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 22, 2013 at 1:27am

बहुत खूब संदीप साहब, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है। दाद कुबूल कीजिए

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