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इश्क के इम्तिहान से सनम यूँ  घबरा गया,
छोड़ कर सागर मे कश्ती खुद किनारे आ गया ....


डूबने की चाहत उसे थी इश्क के दरियाओं मे ,
देखकर रुख भँवर का फिर कैसे खौफ खा गया ...


दोस्ती ओर प्यार मे कुछ इस तरह से जंग हुई,
प्यार कुछ पा न सका ओर दोस्ती को मिटा गया .....


रब ही जाने किस हाल मे रहता है मुझसे रूठकर ,
इस तरह से जाना उसका मुझको कितना रुला गया

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Comment by Roshni Dhir on May 10, 2013 at 5:18pm

केवल प्रसाद जी धन्यवाद आभार 

Comment by Roshni Dhir on May 10, 2013 at 5:18pm

कोशिश है लिखने की Mukerji ,, पसंद करने के लिए आभार 

Comment by Roshni Dhir on May 10, 2013 at 5:17pm

धन्यवाद आ० अशोक जी ... 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 9, 2013 at 11:58pm

रब ही जाने किस हाल मे रहता है मुझसे रूठकर , 
इस तरह से जाना उसका मुझको कितना रुला गया...........वाह! बहुत खूब रोशनी जी बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by coontee mukerji on May 9, 2013 at 11:14pm

इश्क के इम्तिहान से सनम यूँ  घबरा गया,
छोड़ कर सागर मे कश्ती खुद किनारे आ गया ......./अच्छा लगा .लिखते रहें/  सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 9, 2013 at 9:57pm

आ0 रोशनी जी, ’रब ही जाने किस हाल मे रहता है मुझसे रूठकर, इस तरह से जाना उसका मुझको कितना रुला गया’ सुन्दर शे‘र । शुभकामनाओं सहित बधाई स्वीकारें। सादर,

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