For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

|| मै बरगद का पेड ||

मै बरगद का पेड सयाना, चिरस्थिर खडा था आँगन मे ।

कितने मौसम आते जाते, देखे है मैने जीवन मे ।

सदीया बीती नदिया रीति, वो गाँवो का शहर बन जाना  ।

अब मै डरा सहमा सा खडा हुआ हू, इन  कंक्रीटो के वन मे

वो बडॆ प्यार से अम्मा बाबा का, मुझे धरा मे रोपना ।

वो खुद के बच्चो जैसा मेरा, लाड प्यार से पाल पोसना ।

वो पकड के मेरी बाहो को, मुन्ना मुनिया का झुला झुलना

वो चढ के मेरे कंधो पर, कटी फँसी पतंगो को लूटना ।

वो खेल खेल मे लडना झगडना, फिर कट्टी मिठ्ठी हो जाना।  

वो आंख मिचोली पकडा पकडी, वो गुड्डा गुडियो का ब्याह रचाना ।     

कितने बचपन महसूस किये है, मैने अपने अंतर मन मे

मै बरगद का पेड सयाना, चिरस्थिर खडा था आँगन मे ।

 

वो अम्मी का पीछे पीछे, लिये निवाला दौड लगाना ।

वो लल्ला  का मेरे पीछे, आंखे बन्द करके छुप जाना

वो बापू का बाँध के मुझसे, लल्ला को थप्पड लगाना ।

वो लल्ला का मुझ से लिपट कर, आँखो से आसु बहाना ।

वो बहनो का मुझसे वीरा को, छुडाकर स्कूल ले जाना ।

वो दादी का सीने से लगा कर , लल्ला का वो लाड लडाना ।

वो मीठी सी प्यारी यादे, आज भी ताजा है मेरे जेहन मै  ।

मै  बरगद  का पेड सयाना ,चिरस्थिर खडा हू आंगन मे ।

न जाने कितने मौसम देखे है मैने अपने जीवन मे  ॥

हर शाम चबूतरे पर मेरे , बाबा का वो चौपाल लगाना ।

वो चिलम तम्बाखु की डिबिया, वो हुक्को का गुडगुडाना ।

वो हँसी ठिठोली की सर्दीली राते, वो कंडो का आलाब जलाना ।

कभी ज्ञान धरम की बाते होती, कभी विदुषको का जी बहलाना ।

कभी पंचो के सख्त फैसले , कभी बाबा का धीरे से समझाना ।

कभी छुटते रिश्तो का मिलना , कभी दहरियो का बट जाना ।

न जाने फिर कब लौट के आये, वो गुजरी यादो का जमाना ॥

अब बस थोडी सी जान बची है मेरे इस जर्जर तन मे ॥

मै  बरगद  का पेड सयाना ,चिरस्थिर खडा था आंगन मे ।

 

वो सुन  शादी ब्याह की बातो को, मेरे पीछे मुनिया का शर्माना ।

वो मेरी ओट से दुल्हे का देखना , देख मुनिया का आंखे झुकाना ।

देख के उसकी नम आंखो को, बरबस मेरी आंखो का नम हो जाना ।

वो सजते तोरण द्वार ,वो मंगल गीतो का गाना ।

वो सजी धजी सी लाल चोले मे, नई दुल्हन का घर आना ।

लेने अमर सुहाग का अशीष, दुल्हन का मेरे चक्कर लगाना ।

बन ससुर दोनो हाथो से, उस पर अपना अशीष लुटाना ।

ये अंजाने अनकहे से रिश्ते , जो आन बसे थे मेरे मन मे ॥

मै  बरगद  का पेड सयाना ,चिरस्थिर खडा था आंगन मे । 

 

 

वो गुमसुम से फूलो के चेहरे, वो आधे खिल के मुर्झाना ।

वो सुबह अचानक चिडियो का, उठते ही चुप हो जाना ।

मन को व्याकुल कर रहा, लाली का वो करुण रँभाना ।

सन्नाटे को चीर रहा था , वो रह रह कर सिसकियो का आना ।

मानो सब कुछ लुट गया हो, सुन के अम्मा बाबा का जाना ।

अब कैसे गुजरेगा ये जीवन ,तन्हा अकेला सुनेपन मे ।  

मै बरगद का पेड सयाना, चिरस्थिर खडा था आँगन मे ।

कितने मौसम आते जाते, देखे है मैने जीवन मे ।

 

 

 "मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1282

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 27, 2013 at 7:36pm

सुन्दर

Comment by बसंत नेमा on April 27, 2013 at 2:39pm

सही कहा कुंती जी . आप के अशीष के लिये बहुत बहुत धन्यवाद ...........

Comment by coontee mukerji on April 27, 2013 at 1:11pm

मर्मस्पर्शी रचना, जिस प्रकार से गाँवों का शहरीकरण हो रहा  है , वह दिन अब दूर नहीं जब हर बच्चे पूछेंगे ,,,,,

what is badgad , papa ? ....और पापा को एंसीक्लोपिडीया  का पन्ना पलटना पड़ेगा. सादर / कुंती.

Comment by बसंत नेमा on April 27, 2013 at 10:16am

श्री अशोक सर , श्री प्रदीप सर , रचना को मान देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद , आप जैसे गुणी जनो का अशीष मिलता रहे यही कामना करता हू । 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2013 at 3:57pm

आदरणीय नेमा ई सारा द्रश्य आँखों में घूम गया , बधाई सादर 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2013 at 2:06pm

आदरणीय एक छायादार और पूजनीय वृक्ष पर आपने सुन्दर रचना लिखी है. बहुत बहुत बधाई बड़े घने वृक्षों की इस धरा और समाज को बहुत आवश्यकता है. सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 26, 2013 at 10:44am

मै बरगद का पेड सयाना, चिरस्थिर खडा था आँगन मे ।

कितने मौसम आते जाते, देखे है मैने जीवन मे । बहुत खूब काश आज की पीढ़ी आपकी रचना या यूँ कहूँ बरगद के पेड़ को, बरगद के पेड़ की छाया का सुखद अहसास करे | अब न तो घर में बरगद सामान बुजुर्ग के अस्तित्व को महत्त्व देते है, और न ही शहर में बरगद के पेड़ दिखाइ

देते है | एक सुन्दर रचना हार्दिक बधाई भाई श्री बसंत नेमा जी 

Comment by बसंत नेमा on April 26, 2013 at 10:17am

आदरणीय, गनेश सर , ऊषा दीदी,श्री राजेश सर .. भावनाओ को मान देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद ........... 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2013 at 7:38pm

आदरणीय बसंत नेमा जी, बरगद महज पेड़ ही नहीं होता बल्कि एक बुजुर्ग अभिभावक के मानिंद हर दुःख सुख का साथी होता है, बहुत ही सुन्दर रचना, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर ।    

Comment by Usha Taneja on April 25, 2013 at 6:02pm

अति सुंदर रचना. बरगद के पेड़ को पूरे जीवन की, परिवार की, समाज की धुरी के रूप में पेश किया है आपने. बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
17 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल…"
42 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी, अपनी समझ अनुसार मिसरे कुछ यूं किए जा सकते हैं। दिल्लगी के मात्राभार पर शंका है।…"
59 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मनुष्य से आवेग जनित व्यवहार तो युद्धभा में भी वर्जित है और यहां यदा-कदा यही आवेग ही निरर्थक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीया रिचा यादव जी आपको मेरा प्रयास पसंद आया जानकर ख़ुशी हुई। मेरे प्रयास को मान देने के लिए…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपके…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"2122 - 1122 - 1122 - 112 / 22 हमने सीखा है ये धड़कन की ज़बानी लिखना दिल पे आता है हमें दिल की…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"बे-म'आनी को कुशलता से म'आनी लिखना तुमको आता है कहानी से कहानी लिखना यह शेर किसी के हुनर…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय तिलकराज सर, बहुत समय बाद आयोजन के लिए ग़ज़ल कही है। आपको मेरा प्रयास पसंद आया जानकर ख़ुशी…"
1 hour ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service