For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज फिर उसका मन व्यथित था
हाहाकार कर रहा था हृदय
एक कथित पुरुष में
हैवान साकार हुआ था फिर.. 
फिर हैवानियत जीत गई थी 
नरपिशाच के पंजों में
आ गई थी 
फिर एक नन्ही /मासूम सी 
गुड़िया 
आज फिर उसने
अख़बार छिपाया.. 
टीवी के केबल 
निकाल दिये..
उसके भी घर मे  
एक गुड़िया है 
उससे आँख जो मिलानी है..!

आख़िर वह भी तो
एक मर्द है....
"मौलिक व अप्रकाशित" 
पिछला पोस्ट => तुम कैसे श्रेष्ठ ?

Views: 1016

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 25, 2013 at 7:12pm

उससे आँख जो मिलानी है..! पर कैसे मिलावे -

अब यही तो हो रही ग्लानी है, दरकार अब 

नैतिक शिक्षा ही इसके मानी है | 

बाकी तो सब ही मानो बेमानी है -- सुन्दर रचना जिसे पढ़कर ही द्रश्य आँखों के सामने देख गला रुंध जाता है 

हार्दिक बधाई आदरनीय श्री गणेशजी बागी जी

 

Comment by Vindu Babu on April 24, 2013 at 10:15pm
आदरणीय बागी सर सादर प्रणाम!
बिल्कुल यथार्थ को बयां करती व अन्त: को कुरेदती हुई रचना।अखबार छिपाने/केबल हटाने की प्रवृत्ति नन्हीं बच्ची की क्या,वह तो बेचारी मासूम है ही,लगभग सम्पूर्ण महिला समाज की होती जा रही है महोदय,क्योंकि पशुवत् घटनाएं तो नित्य हो रहीं हैं और समाधान दूर-दूर तक दीखता नहीं...
अति मार्मिक प्रस्तुति!
सादर
Comment by ram shiromani pathak on April 24, 2013 at 9:28pm

आदरणीय गणेश सर जी,बहुत सटीक व्यंग है आपका //मानवता लगता है मर रही है ///

अथार्थ से अवगत कराती रचना//प्रणाम सहित   हार्दिक बधाई स्वीकारे।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 24, 2013 at 4:52pm

फोन से इस रचना के संदर्भ में जो कहना था खुल कर कहा अब मौका मिला है कि लिखित रूप से साझा करूँ. जिस दौर से हम गुजर रहे हैं वह दौर राक्षसी व्यवहार के विस्फोट का है. तंदूर में जलाते-जलाते हम बच्चियों की अस्मिता तक आगये हैं.

आगे क्या कहूँ ? आपकी वैचारिक ऊहापोह को मेरा समर्थन.

हार्दिक धन्यवाद हृदय की खिन्नता को स्वर देने के लिए.. .

Comment by Dr.Ajay Khare on April 24, 2013 at 2:21pm

adarniy bagi aaj ke paripechy ka chitran manodasha ka aaklan aapne bade hi sateek tarike se pesh kiya v bishay ke prati apni sambedna jatai kabile tareef hai badhai

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 24, 2013 at 1:24pm

आदरणीय भ्राताश्री बागी सर जी सादर, वर्तमान घटना का घिनौना सच बयां किया है आपने, किस तरह से आपने अपने घायल मन की पीड़ा को शब्दों का रूप दिया है. आपकी लेखनी को मेरा विन्रम प्रणाम. भगवान अब केवल देर ही नहीं अंधेर भी हो गई है कहाँ हो प्रभु जागो.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 24, 2013 at 10:24am

आ0 गणेशजी बागी जी,  कोटि-कोटि नमन!  सर जी,   अतिसुन्दर और, मन को झकझोरती  सार्थक रचना।  हार्दिक बधाई स्वीकारे।  सादर,

Comment by कल्पना रामानी on April 24, 2013 at 9:46am

आज की बढ़ती पाशविक वृत्तियों  पर चोट करती हुई मर्म भेदी रचना, काश! दरिंदों की भी नज़र यहाँ तक पहुँच पाती....

आदरणीय बागी जी, मन को झकझोर देने वाली रचना से मन बहुत व्यथित हो गया है बधाई क्या दूँ, बस आपकी लेखनी को नमन ।... 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 24, 2013 at 9:10am

सहमत हूँ आदरणीय संजय भाई, टिप्पणी हेतु आभार ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 24, 2013 at 9:09am

आदरणीय अशोक कत्याल जी, कविता आपको अच्छी लगी यह जान मन गदगद हुआ, बहुत बहुत आभार |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service