For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छोड़ आए गाँव में वो, ज़िंदगानी याद है।

सौंपकर पुरखे गए जो, वो निशानी याद है।

 

गाँव था सारा हमारा, ज्यों गुलों का इक चमन,

शीत, गर्मी, बारिशों की, ऋतु सुहानी याद है।

 

एक हो खाना खिलाना, रूठ जाने की अदा,

फिर मनाने मानने की, वो कहानी याद है।

 

छुप-छुपाते, खिलखिलाते, हँस हँसाते रात दिन,

फूल, बगिया, बेल-चम्पा, रात रानी याद है।

 

मुँह अँधेरे, त्याग बिस्तर, भागना भूले कहाँ?

हाथ में माँ से मिली, गुड़ और धानी याद है।

 

ज्ञान गुण के बोध का, कितना सुखद अहसास वो,

जो बुजुर्गों ने हमें दी, सीख वानी याद है।

 

आ गया उस गाँव में, झोंका अचानक लोभ का,

जब शहर ने छीन ली, हमसे जवानी याद है।

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

कल्पना रामानी

Views: 729

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on April 24, 2013 at 9:50am

वेदिका जी, हार्दिक आभार...अच्छा है आप गाँव में हैं। फर्क तो शहर में रहने से पता चलता है की कुछ पाने के लिए कितना खोना पड़ता है।

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 24, 2013 at 8:45am

आदरणीया कल्पना रामानी जी सादर, वक्त के बदलाव पर कही सुन्दर गजल. हर शेर मस्त है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by वेदिका on April 23, 2013 at 8:17pm

बहुत खूब आदरणीय कल्पना जी!

आ गया उस गाँव में, झोंका अचानक लोभ का,

जब शहर ने छीन ली, हमसे जवानी याद है।//

अब गाँव में रह रही हूँ तो गाँव की सुखदायी बातें अच्छी लगती है ....बहुत अच्छी ...

शुभकामनायें

Comment by कल्पना रामानी on April 23, 2013 at 6:00pm

आदरणीय बृजेश कुमार जी, हृदय से धन्यवाद आपका...

Comment by कल्पना रामानी on April 23, 2013 at 5:59pm

आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी, सुंदर टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on April 23, 2013 at 5:52pm

आ गया उस गाँव में, झोंका अचानक लोभ का,

जब शहर ने छीन ली, हमसे जवानी याद है।

लाजवाब शेर ....ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई|

Comment by बृजेश नीरज on April 23, 2013 at 5:47pm

कल्पना जी बहुत सुन्दर गज़ल कही आपने। मेरी ढेरों बधाई स्वीकारें।

//आ गया उस गाँव में, झोंका अचानक लोभ का,

जब शहर ने छीन ली, हमसे जवानी याद है।//

इन पंक्तियों के लिए विशेष तौर पर बधाई स्वीकारें।

Comment by कल्पना रामानी on April 23, 2013 at 5:35pm

 आदरणीय अभिनव अरुण जी, यह गजल,चुपके चुपके... मुझे बहुत प्रिय है, इसी को याद करते हुए ही यह रचना तैयार की है।  आपका हार्दिक धन्यवाद ...

Comment by कल्पना रामानी on April 23, 2013 at 5:31pm

केवल प्रसाद जी, हार्दिक आभार...

Comment by कल्पना रामानी on April 23, 2013 at 5:30pm

प्राची जी, बहुत बहुत धन्यवाद ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service