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बेटी के शव पर.....तोटक छंद

बिटिया कछु बोलत नाहि कहौ
चुपचाप पडी कहती न सुनौ
यह तात पुकारत है तुम्ह को
अब धाय उठो उठ धाय चलौ

-----------

रखिया न भुला कहता बिरना
बतिया यह मोरि सुनो बहना
'छुटकी' नहि तोर सहाय भयो
अब धाय उठो उठ धाय चलो
---------
सखियाँ सब खेलन चाह रही
खटिया पर मात कराह रही
यह बात सुनौ नहि देर करौ
अब धाय उठो उठ धाय चलौ
------
बस एक सवाल बसै मन मे
क्यस भूल भयी यह जीवन मे
भगवान कहाँ हम चूक गये
नहि धाय उठे नहि धाय चले
-------

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 14, 2013 at 5:18pm

आदरणीय मनोज जी 

भाव पूर्ण अभिव्यक्ति हेतु बधाई 

सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 4:28pm

आ0 मनोज जी, अतिसुन्दर। बधाई स्वीकारें।

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 14, 2013 at 2:39pm
भाई मनोज जी! बहुत मार्मिक रचना है। सच बेटी ही नहीं किसी की भी मृत्यु हो दुखी कर जाती है।;(;(;(
पिता की पीड़ा को बखूबी चित्रित करने लिये हार्दिक बधाई।
लेकिन छंद के शिल्प पर थोड़ा और कार्य करना पड़ेगा।यथा तुकान्त की समस्या है।
साथ ही इन पंक्तयों पर पुन: गौर करें-
//यह बाप पुकारत है तुम्ह को//
//वह भाय निहारत है बहना//
Comment by ram shiromani pathak on April 14, 2013 at 1:50pm

नहि डोलत बोलत हो कछु भी
कब से तुम सोय रही घर मा
लडता तुम से हर रोज यही
वह भाय निहारत है बहना//मार्मिक

बड़े सुन्दर भाव आदरणीय हार्दिक बधाई 

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