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वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है "ग़ज़ल"

इक ताज़ा ग़ज़ल पेशेखिदमत है आपके जानिब

 

वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है

ग़मों में मुस्कुराने का बहाना ढूँढ लेता है

 

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है

 

मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे

मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है

 

बुरी आदत है उसकी एक का दो चार करने की

पडोसी पर नज़र रख के फ़साना ढूँढ लेता है

 

अहम् झूठा नहीं करता गिला शिकवा नहीं करता

सभी के दिल में वो अपना ठिकाना ढूँढ लेता है

 

उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में  

ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है

 

उजालों ने कभी उस दीप की कीमत नहीं जानी

जो खुद जलने अँधेरों का खजाना ढूँढ लेता है 

 

संदीप पटेल “दीप”

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:42pm

आदरणीय अजय सर जी सादर प्रणाम

ग़ज़ल को पसंद कर हौसलाफजाई के लिए आभार

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:40pm

आदरणीय श्यामनारायण सर जी सादर प्रणाम

ग़ज़ल को सराहने हेतु आभार आपका स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:40pm

आदरणीय लक्षमण सर जी सादर प्रणाम

आपकी हौसलाफजाई और मुहब्बतों के लिए आभार

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:39pm

आदरणीया प्रवीण जी सादर प्रणाम

इस सराहना हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रिया

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:38pm

आदरणीय विजय जी सादर प्रणाम

इस हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत आभार

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:37pm

आदरणीय राम भाई सादर

ग़ज़ल को सराहने हेतु बहुत बहुत आभार आपका स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 10, 2013 at 8:35am

इंसानी फितरत को हवा देती सुन्दर गजल आदरणीय भाई संदीप जी बहुत बहुत दाद कुबूल फरमाइए.

Comment by Savitri Rathore on April 9, 2013 at 5:07pm

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है

 वाह ...... संदीप जी,क्या ग़ज़ल कही है ......हर पंक्ति एक  से एक बढ़कर है ...........बहुत बढ़िया।

Comment by Tilak Raj Kapoor on April 9, 2013 at 12:16am

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है

बहुत दमदार ग़ज़ल कही है भाई। 

Comment by Meena Pathak on April 8, 2013 at 7:39pm

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है...... सच है ... बधाई स्वीकारें 

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