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प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन

प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन

हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन

जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन

लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन

जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन

खो गए वस्ल के लम्हे "श्रद्धा"
मूंद मत आँख, ये क्या पागलपन

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Comment

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Comment by Rash Bihari Ravi on November 19, 2010 at 5:59pm
bahut khub jai hooooooooooooo
Comment by satish mapatpuri on November 19, 2010 at 4:03pm
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
सादर नमन, आपके खुबसूरत ख्याल ने हमें भी माजी की तरफ देखने को विवश कर दिया. शुक्रिया.
Comment by Ratnesh Raman Pathak on November 17, 2010 at 6:40pm
इस गजल में तो वो बात है जिसका शब्दों से वर्णन नहीं किया जा सकता .....बहुत ही कम सब्दो में आपने बहुत कुछ कह दिया ...धन्यवाद्
Comment by Shanno Aggarwal on November 17, 2010 at 6:26pm
बहुत बढ़िया श्रद्धा..बहुत खूब.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 17, 2010 at 6:22pm
बहुत खूब ...क्या बात कही है ...आज भला इन्सान पागल ही बना फिर रहा है और उसकी भली हरकतें पागलपन| 'पागलपन' रदीफ़ के साथ पूरा न्याय करते हुए शेर| जितनी गहरी बात उतनी ही सादगी से कह दी गई| श्रद्धा दीदी आपकी ग़ज़लें तो हमेशा ही पढ़ते रहते हैं यहाँ पर भी पढ़कर बहुत सुखद अनुभूति हुई|

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 17, 2010 at 6:22pm
वोहो, क्या बात है, पागलपन को रदीफ़ बना बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल कही है, साथ ही इस शे'र का क्या कहना ...
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन

वाह वाह , बेहतरीन ख्यालात और सच्चाई के साथ पागलपन की जुगलबंदी कहर ढा रहा है ,

मकता की बात किये बिना तो टिप्पणी ही अधूरी है , बहुत खूब , दाद कुबूल कीजिये आदरणीया श्रद्धा जी, लग रहा है कि इस बार के "OBO लाइव तरही मुशायरा" जो २०.११.१० से प्रारंभ होने वाला है , मे बहुत मजा आने वाला है |

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