For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हरिगीतिका/16,12 जय जय हनुमान !!!

हनुमान दास, राम गुन भाष, भक्ति रस ज्ञानी घने।

तु चंचल चपल, तेजस अतिबल, अखिल रवि विद्या जने।।

तुम मारूत सुत, शंकर अंशम, देव सब तप वरदने।

तुम अजर अमर, सुजान सुन्दर, प्रेम रस देखत बने।।1

महत्तम वीर, औ विकट धीर, निर्मलता हृदय रमी।

तुम दीन कथा, समरथ विरथा, तत्छन उबारत गमी।।

बहु विधि सताय, लंक जराए, सीतहि हर दुःख थमी।

संजीवन सुख, लछमन जागे, सफल काज नाहि कमी।।2

रघुवीर पाद, सनेह रूचि रख, काज तुम बड़-बड़ कियो।

श्री राम दिये, मोतिन माला, दांत तुम चट-चट कियो।।

पूंछहि अचरज, सीतहि माता, मोतिया क्यों चट कियो।

बोले हनुमत, राम गुनों बिन, दाह दिल माला कियो।।3

के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 771

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 8:36am

आदरणीया, डा0 प्राची सिंह जी, जी मैम,
हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका
१ १ २ १ २,  १ १ २ १ २,    १ १, २ १ २,   १ १ २ १ २
२ २ १ २,    २ २ १ २,       २ २ १ २,       २ २ १ २ अब तो बिलकुल साफ हो गया। आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 8:25am

आदरणीय, श्री सौरभ पाण्डे, गुरूवर जी, मेरा ध्यान केवल 5वीं, 12वीं, 19वीं और 26वीं मात्रा के लघु होने पर केन्द्रित हो गया था और 11212 पर पकड़ कमजोर हो गई।  आपका बहुत-बहुत आभार। जी, सुधार की जरूरत है। सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 4, 2013 at 7:35am

आ० केवल प्रसाद जी,

हरिगीतिका छन्द पर हुए संवाद को यहाँ पुनः स्पष्ट कर रही हूँ 

हरिगीतिका     हरिगीतिका     हरि,   गीतिका     हरिगीतिका 

१ १ २ १ २      १ १ २ १ २      १ १,    २ १ २      १ १ २ १ २

  २ १ २          २ २ १ २       २       २ १ २         २ २ १ २ 

११ को २ तभी माना जा सकता है जब वो एक ही शब्द का हिस्सा हों 

उदाहरण के तौर पर अपनी यह पंक्ति देखिये 

हनुमान दास, राम गुन भाष

 १ १  २ १  २ १  २ १ १ १    २ १ ................इसे २ पढ़ना संभव नहीं , इस तरह ही गेयता अवरुद्ध होती है 

हनुमान दास, राम गुन भाष.....यहाँ भी 

१ १ २ १ २ १ २ ...........................यहाँ १२ की नहीं २ २ की आवश्यकता है 

विश्वास है अब स्पष्ट हुआ होगा .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2013 at 11:02pm

भाई केवलप्रसादजी, आपने जिस संवाद की चर्चा की है, उसमें अवश्य कुछ और बातें अंतर्निहित होंगी. फिर भी आपके प्रस्तुत प्रयास पर आपको बधाई.

किन्तु, अमूमन सभी जागरुक प्रयासकर्ताओं ने आपको रचनान्तर्गत कमियों के प्रति अगाह किया है. मुझे ये जान कर आत्मीय संतोष हो रहा है कि आपकी रचना के संदर्भ में पाठकीय दायित्व का सुखद निर्वहन हुआ है.

प्रस्तुत की गयीं दोषपूर्ण रचनाओं पर पाठकों द्वारा हुआ निरर्थक वाह-वाह या अनावश्यक की हौसलाअफ़ज़ाई बिना किसी तथ्य की होती हैं.  या, अनावश्यक वाह-वाही विधाओं के प्रति उक्त पाठक की  न-जानकारी होना ही बताती हैं.

हरिगीतिका छंद का विधान इस मंच के भारतीय छंद विधान समूह में भी है. आप उचित रेफ़ेरेंस के लिए कृपया उसे देख लें.

किसी संवाद मात्र पर निर्भर रहना दोषपरक ही होगा, जैसा कि आपकी रचना से स्पष्ट प्रतीत हो रहा है. यह तो मान्य ही है कि किसी विधान पर कोई संवाद मूल आलेख के बाद कड़ियाँ होती हैं. अतः मूल लेख को हृदंगम करना किसी रचनाकार का पहला प्रयास होना चाहिये.

दूसरे, भाई संदीपजी ने हरिगीतिका छंद के पदों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण जानकारी साझा की है.

आप

हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका 

के अनुसार,   या

श्रीगीतिका श्रीगीतिका श्री, गीतिका श्रीगीतिका

के अनुसार या इनके ही सम्यक मिश्रण से शब्द एवं तदनुरूप मात्रा तय करें. शुभेच्छाएँ.. .

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 3, 2013 at 10:24pm

आदरणीय, संदीप कुमार पटेल जी, बहुत-बहुत आभार। जी, सुधार की जरूरत है।सादर,

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 3, 2013 at 9:53pm

आदरणीय केवल जी सादर

आपकी रचना में प्रवाह अवरुद्ध है

किसी भी छंद में भावों के साथ साथ प्रवाह का होना भी बहुत आवश्यक है

जिसकी कमी खल रही है

इसे कुछ यूँ सुधारें

हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका

श्री राम चन्द्र कृपाल भजमन हरण भव् भय दारुणं

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 3, 2013 at 8:51pm

आदरणीया डा0 प्राची सिंह जी, मैम जी आपके सुन्दर मार्गदर्शन एवं आशीष वचन हेतु मैं बार-बार आपको नमन् करता हूं। सादर, 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 3, 2013 at 8:25pm

हरिगीतिका छंद पर आपके संशय स्पष्ट हो सके, और आपने मेरे कहे हो मान दिया इस हेतु आभारी हूँ आ० केवल प्रसाद जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 3, 2013 at 7:03pm
आदरणीया डा0 प्राची सिंह जी, प्रस्तुत हरिगीतिका ‘जय जय हनुमान‘ का गुण गान करने हेतु मैंने काव्य के अंग पुस्तक एवं ओ0बी0ओ0 पर आचार्य सलिल जी एवं गुरूवर श्रीसौरभ पाण्डे जी की वार्ता को पढ़ने के उपरान्त ही पद्यांश की रचना की है। आपसे वार्ता में स्पष्ट हो गया है कि मेरा ध्यान कहीं और भटक गया था, और तनिक चूक हो गई। गेयता पर विशेष ध्यान की आवश्यकता होती है। आपका हार्दिक आभार। सादर,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 3, 2013 at 9:54am

आदरणीय केवल प्रसाद जी,
हरिगीतिका छंद पर आपने प्रयास किया इस लिए आप प्रशंसा के पात्र हैं,
पर आदरणीय इस प्रस्तुति में गेयता पूर्णतः अवरुद्ध है..
कृपया आप वह नियम सांझा कीजिये, जिस पर आपने इस छंद को लिखा है ...... बाकी चर्चा उसके बाद करते हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service