For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दर्द चेहरे पे नहीं भूल से लाया करिए "ग़ज़ल"

===========ग़ज़ल===========

 

दर्द चेहरे पे नहीं भूल से लाया करिए

लुत्फ़ लेता है ज़माना ये छुपाया करिए

 

सच है हर बात तो फिर सामने आया करिए

आइने से यूँ निगाहें न चुराया करिए

 

हर कोई अपना नज़र तुमको भी आएगा  

चंद लम्हों को सही “मैं” तो भुलाया करिए

 

चश्म में इश्क अगर देखना हो सच्चा तो

कोई मजलूम कलेजे से लगाया करिए

 

हो बड़े गर तो गरीबों को सहारा देकर

इस अमीरी को कभी आप भुनाया करिए

 

पत्थरों में है खुदा अब भी नहीं इंसां में

अपनी हर पीर किसी बुत को सुनाया करिए

 

बाद गिरने के फखत कोसना अच्छा तो नहीं

“दीप” फिर राह से पत्थर तो हटाया करिए

 

 

संदीप पटेल “दीप”

Views: 609

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Monika Dubey on April 2, 2013 at 10:11pm

अच्छाई की सीख देती हुई एक सुन्दर ग़ज़ल है 

बहुत -बहुत बधाई .....संदीप जी 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 2, 2013 at 8:59pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम

आपकी दाद ह्रदय से कुबूल है

स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2013 at 12:11pm

दर्द चेहरे पे नहीं भूल से लाया करिए

लुत्फ़ लेता है ज़माना ये छुपाया करिए-----कुर्बान जाऊं ज इस मतले पर 

 

हर कोई अपना नज़र तुमको भी आएगा  

चंद लम्हों को सही “मैं” तो भुलाया करिए-----तारीफ के लिए शब्द नहीं 

बाद गिरने के फखत कोसना अच्छा तो नहीं

“दीप” फिर राह से पत्थर तो हटाया करिए-----शानदार मकता 


प्रिय संदीप बहुत पसंद आई ये ग़ज़ल दाद कबूलें 

 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 1, 2013 at 9:05pm

आदरणीय राम जी सादर

इस हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by ram shiromani pathak on April 1, 2013 at 4:48pm

वाह संदीप भाई वाह -- बहुत बढ़िया गजल हुई है/////////////बधाई भाई संदीप पटेल जी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 1, 2013 at 2:47pm

आदरणीय गुरुदेव ये स्नेह और आशीष यूँ ही बनाए रखिए सादर प्रणाम 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2013 at 2:42pm

पत्थरों में है खुदा अब भी नहीं इंसां में ..

भाई संदीपजी, यह मिसरा अब एकदम स्पष्ट है. पता नहीं क्यों मैं उलझ गया था ! या, सही कहिये, अपनी सीमों के पार नहीं जा पा रहा था.  मैं अब इस अब भी  को अब तो, अब तक किसी के समक्ष देख पा रहा हूँ.

स्पष्ट करने के लिए हार्दिक धन्यवाद.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 1, 2013 at 2:24pm

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम

अब भी का प्रयोग इसीलिए के, मूर्ति मे भगवान है और इंसान के अंदर भी भगवान है ये दोनों बातें कहते आए हैं हमारे शास्त्र 
किंतु अब इंसान में ऐसा नहीं दिखता इसीलिए पत्थरों में अब भी की बात कही है 
आपका मार्गदर्शन क्या है इस परिपेक्षय मे गुरुदेव अवश्य कहिएगा 
आपका स्नेह और आशीष यूँ ही बनाए रखिए 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 1, 2013 at 2:24pm

आदरणीय लक्ष्मण सर जी , आदरणीय आशीष भाई, आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी, आदरणीय विजय मिश्र जी सादर प्रणाम
इस हौसलाफजाई के लिए आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by विजय मिश्र on April 1, 2013 at 1:46pm

वाह संदीप भाई वाह -- 

चश्म में इश्क अगर देखना हो सच्चा तो

कोई मजलूम कलेजे से लगाया करिए | ----------- हर बंद बेहतरीन . बधाई लें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
47 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service