For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दर्द चेहरे पे नहीं भूल से लाया करिए "ग़ज़ल"

===========ग़ज़ल===========

 

दर्द चेहरे पे नहीं भूल से लाया करिए

लुत्फ़ लेता है ज़माना ये छुपाया करिए

 

सच है हर बात तो फिर सामने आया करिए

आइने से यूँ निगाहें न चुराया करिए

 

हर कोई अपना नज़र तुमको भी आएगा  

चंद लम्हों को सही “मैं” तो भुलाया करिए

 

चश्म में इश्क अगर देखना हो सच्चा तो

कोई मजलूम कलेजे से लगाया करिए

 

हो बड़े गर तो गरीबों को सहारा देकर

इस अमीरी को कभी आप भुनाया करिए

 

पत्थरों में है खुदा अब भी नहीं इंसां में

अपनी हर पीर किसी बुत को सुनाया करिए

 

बाद गिरने के फखत कोसना अच्छा तो नहीं

“दीप” फिर राह से पत्थर तो हटाया करिए

 

 

संदीप पटेल “दीप”

Views: 572

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Monika Dubey on April 2, 2013 at 10:11pm

अच्छाई की सीख देती हुई एक सुन्दर ग़ज़ल है 

बहुत -बहुत बधाई .....संदीप जी 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 2, 2013 at 8:59pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम

आपकी दाद ह्रदय से कुबूल है

स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2013 at 12:11pm

दर्द चेहरे पे नहीं भूल से लाया करिए

लुत्फ़ लेता है ज़माना ये छुपाया करिए-----कुर्बान जाऊं ज इस मतले पर 

 

हर कोई अपना नज़र तुमको भी आएगा  

चंद लम्हों को सही “मैं” तो भुलाया करिए-----तारीफ के लिए शब्द नहीं 

बाद गिरने के फखत कोसना अच्छा तो नहीं

“दीप” फिर राह से पत्थर तो हटाया करिए-----शानदार मकता 


प्रिय संदीप बहुत पसंद आई ये ग़ज़ल दाद कबूलें 

 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 1, 2013 at 9:05pm

आदरणीय राम जी सादर

इस हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by ram shiromani pathak on April 1, 2013 at 4:48pm

वाह संदीप भाई वाह -- बहुत बढ़िया गजल हुई है/////////////बधाई भाई संदीप पटेल जी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 1, 2013 at 2:47pm

आदरणीय गुरुदेव ये स्नेह और आशीष यूँ ही बनाए रखिए सादर प्रणाम 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2013 at 2:42pm

पत्थरों में है खुदा अब भी नहीं इंसां में ..

भाई संदीपजी, यह मिसरा अब एकदम स्पष्ट है. पता नहीं क्यों मैं उलझ गया था ! या, सही कहिये, अपनी सीमों के पार नहीं जा पा रहा था.  मैं अब इस अब भी  को अब तो, अब तक किसी के समक्ष देख पा रहा हूँ.

स्पष्ट करने के लिए हार्दिक धन्यवाद.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 1, 2013 at 2:24pm

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम

अब भी का प्रयोग इसीलिए के, मूर्ति मे भगवान है और इंसान के अंदर भी भगवान है ये दोनों बातें कहते आए हैं हमारे शास्त्र 
किंतु अब इंसान में ऐसा नहीं दिखता इसीलिए पत्थरों में अब भी की बात कही है 
आपका मार्गदर्शन क्या है इस परिपेक्षय मे गुरुदेव अवश्य कहिएगा 
आपका स्नेह और आशीष यूँ ही बनाए रखिए 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 1, 2013 at 2:24pm

आदरणीय लक्ष्मण सर जी , आदरणीय आशीष भाई, आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी, आदरणीय विजय मिश्र जी सादर प्रणाम
इस हौसलाफजाई के लिए आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार स्नेह यूँ ही बनाए रखिए

Comment by विजय मिश्र on April 1, 2013 at 1:46pm

वाह संदीप भाई वाह -- 

चश्म में इश्क अगर देखना हो सच्चा तो

कोई मजलूम कलेजे से लगाया करिए | ----------- हर बंद बेहतरीन . बधाई लें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service