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याद है ....
पहले की दिन कितने
बड़े होते थे
अम्मा तीन बार जगाती थी..
तब कहीं ७(सात) बजा करते थे..
नाश्ता करके ..
उछलते हुए स्कूल जाना
रास्ते में ठेले से केले खींचकर खान
आधी छुट्टी में स्कूल के बाहर
खड़े ठेले से चाट खाना ...
छुट्टी होते ही दोड़ते हुए
घर की तरफ भागना ...
कितना मज़ा था ...
उन दिनों का ..
अम्मा का दौड़ा .. दौड़ा कर खाना खिलाना ..
और समय होता था बस दोपहर का २(दो)
वाकई पहले के दिन कितने
बड़े होते थे ...
थक कर जब अम्मा की गोद में
सोया करते थे .. .
कब सुबह हुई ..
कब शाम हुई ...
पता ही नहीं चलता था..
पर आज न तो अम्मा रही ..
न वो गोद रही..
न वो प्यार रहा..
याद है..
पहले की दिन ....कितने
लम्बे होते थे.... ..

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Comment

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Comment by coontee mukerji on March 31, 2013 at 1:04am

बहुत सुनदर आमोद जी मैं तो जाने कितने साल पीछे चली गयी.बेहद सफल कविता. बधाई

Comment by vijay nikore on March 30, 2013 at 4:01pm

आमोद जी,

 

हम आयु में कितने ही बढ़ जाएँ, माँ का साया "माँ का साया" होता है।

माँ के प्रति इस मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 30, 2013 at 2:41pm

बचपन की यादें, उछलकूद, बेफिक्री, माँ का साया.... इन सुन्दर भावों से सजी अभिव्यक्ति के लिए बधाई आमोद जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 30, 2013 at 12:30pm

भाव-प्रधान अभिव्यक्ति हेतु बधाई .. इसके साथ ही निवेदन है कि आप अपनी प्रस्तुतियों के प्रति गंभीर रहें.

शुभेच्छाएँ.. .

Comment by Amod Kumar Srivastava on March 30, 2013 at 12:12pm

धन्यवाद् लक्ष्मण जी .. आभार  ...

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 30, 2013 at 12:07pm

बचपन की सुन्दर यादे जिन्दगी का सुनहरा द्रश्य हमेशा ही सुखद अनुभूति देता है | यह सुखद अनुभूति कराने के लिए धन्यवाद 

और अच्छी रचना के लिए बधाई 

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