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"मैं हूं मौन!"

मैं कौन हूं ?

मैं हूं मौन!
महिलाओं की चैन लुटती रही
सरे राह।
दामिनी-दिल्ली की अस्मिता बनी
लाचारी।
सड़क पर बिफर गई
बेचारी।
और मैं मोमबत्ती जलाकर देखता रहा!
मैं कायर हूं ? नहीं!
कायरता नहीं मुझमें!
बस उन अबलाओं और अपने घरों की सुरक्षा में
सेंध देखता रहा !
और मैं मौन रहा।1


पुलिस की घूस, ठूंस, लाठी
बेवजह चलते रहे
अविराम!
नौकरशाही घोटाले अथ.
नेताओं का खुला भ्रष्टाचार
उजाड़!
कनूनी दांव-पेंच से कतराता रहा
मैं चुप, सब देखता-सुनता रहा!
मैं अंधा हूं ! नहीं।
अंधता नहीं मुझमें!
बस स्वयं की रोजी-बच्चों की शिक्षा में एक
ब्लैक होल देखता रहा!
और मैं मौन रहा।2


बेटा मथुरा शान
जवान!
ये देश की कैसी मजबूरी
कटा दिया सिर को ना बेची
खुद्दारी!
भीड़ ने ही दिया श्रध्दांजलि
पिस कर यहां!
इण्डिया गेट पर जवान-ज्योति
बस! कराहती रही।
मैं गद्दार हूं? नहीं।
गद्दारी नही मुझमें
बस! बेहद सर्द मौसम मे खड़ा
मैं पानी और पानी की धार देखता रहा!
और मैं मौन रहा।3
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 27, 2013 at 9:15pm

आदरणीय, स्वर्ण जे0 ओेंकार जी, आपका हार्दिक आभार!  आपको सपरिवार प्रेम-सद्भावना के प्रतीक होली के पावन त्योहार पर बहुत बहुत शुभकामनाएं एवं धन्यवाद।

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 27, 2013 at 9:38am

केवल प्रसाद जी 

ख़ामोशी और आवाज़, शब्द और कृत्य, आलस्य एवम उत्साह, जड़ व चैतन्य के बीच झूलता आम आदमी के अस्तित्व की बात की आपने। क्या यह कायरता है गद्दारी है या केवल मौन। केवल जीवन को धक्का देने वाले असंख्य हैं यहाँ। क्या साहित्यकार कवी लेखक का शुमार है इन में। क्या लेखक आम व्यक्ति भी है? क्या लेखक का एक्टिविस्ट होना ज़रूरी है। क्या केवल कह कर, कवितायें लिख कर मानव जीवन की  गंभीर सरोकारों से मुक्ति पाई जा सकती है।
साहित्य जीवन पर कटाक्ष  ही तो है। साहित्यकार का रोल एक  कटाक्ष कर्ता से ज्यादा है। आप ने इंगित किया है।
लेकिन आम आदमी की व्यथा इस से भी ज्यादा है। केवल मौन आलस्य व जड़ जीवन है उस का। सहमा सहमा सा अस्तित्व है उसका।
धन्यवा
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 27, 2013 at 8:52am

आदरणीय, श्री जवाहर लाल सिंह जी, आपका हार्दिक आभार!  आपको सपरिवार प्रेम-सद्भावना के प्रतीक होली के पावन त्योहार पर बहुत बहुत शुभकामनाएं हार्दिक एवं धन्यवाद।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 27, 2013 at 5:12am

एक ऍम आदमी की विवशता झलकती रचना! बधाई केवल प्रसाद जी आपकी अभिब्यक्ति में हम सभी शामिल हैं!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 26, 2013 at 5:54am

आदरणीय श्री राज लल्ली शर्मा जी,  आपका हार्दिक आभार एवं धन्यवाद।

Comment by राज लाली बटाला on March 26, 2013 at 1:23am

बहुत ही बढि़या ।केवल प्रसाद जी

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2013 at 9:34pm

आदरणीया नीलिमा शर्मा जी,  आपका हार्दिक आभार एवं धन्यवाद।

Comment by Neelima Sharma Nivia on March 25, 2013 at 6:32pm

 बेहतरीन

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2013 at 5:00pm

आदरणीय श्री राजेश कुमार झा जी,  आपका  हार्दिक आभार एवं बहुत बहुत  धन्यवाद।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2013 at 4:56pm

आदरणीय श्री राम शिरोमणि पाठक जी,  आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार!

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