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तेज धूप में छांव की आस है

रेत के बीच बढ़ रही प्यास है

 

हाथ में तीर और तलवार है

वो जो मेरे दिल के पास है

 

कथन के अर्थ को समझ लेना

अपनों की अपनों से खटास है

 

बाल धूप में सफेद होने लगे

तेरी उम्र में फिर क्या खास है

 

वो कल जिंदा था आज लाश है
विरोध उनको आता नहीं रास है

                       - बृजेश नीरज

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Comment by बृजेश नीरज on February 24, 2013 at 6:28pm

आदरणीय गणेश जी
आपका बहुत आभार!
इस गलती की ओर मेरा ध्यान ही नहीं गया। अब संशोधन आप ही सुझाएं।
सादर!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 24, 2013 at 4:18pm

भाई बृजेश नीरज जी ग़ज़ल निसंदेह अच्छी हुई है, सभी शेर बढ़िया निकाला है, अंतिम शेर में प्रयुक्त काफिया "लाश" पर एक नजर डालेंगे जरा, ग़ज़ल में और में अंतर समझा जायेगा । 

इस प्रस्तुति पर दाद स्वीकार कीजिये खास कर बाल धुप .....वाला शेर पर ।

Comment by बृजेश नीरज on February 24, 2013 at 8:25am

श्रीराम जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by श्रीराम on February 24, 2013 at 7:43am

 क्या सुन्दर बात कही आपने....

हार्दिक बधाई

Comment by बृजेश नीरज on February 23, 2013 at 11:45pm

 SANDEEP KUMAR PATEL ji,

आपका आभार! 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 23, 2013 at 11:40pm

वाह वाह ............सुन्दर

Comment by बृजेश नीरज on February 23, 2013 at 11:31pm

आदरणीय नादिर जी आपका बहुत बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on February 23, 2013 at 11:30pm

आशीष जी आपको रचना पसन्द आयी लिखना सार्थक हुआ।

Comment by नादिर ख़ान on February 23, 2013 at 11:23pm

विरोध की हिम्मत हो तो कर
वो कल जिंदा था आज लाश है
बहुत सही कहा बृजेश जी ...
उम्दा रचना के लिए बधाई..

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 23, 2013 at 10:48pm

कथन के अर्थ को समझ लेना

अपनों की अपनों से खटास है | वाह क्या सुन्दर बात कही आपने....

हार्दिक बधाई नीरज जी |

कृपया ध्यान दे...

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