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"छंद त्रिभंगी "(एक प्रयास)

"छंद त्रिभंगी "

उठ नींद से गहरी , अर्जुन प्रहरी, नयना अपने, खोल ज़रा
पद साथ बढ़ा के , चाप चढ़ा के , इन्कलाब तो, बोल ज़रा
या छोड़ दिखावा, ये पहनावा, भगवा धारण, तुम कर लो
बन संत तजो सब, मौन रहो अब, मन का मारण,तुम कर लो

,,,,,,,दीप ............

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 7:45pm

आदरणीया भावना जी सादर प्रणाम
छंद को सराहने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 7:44pm

आदरणीय विजय सर जी सादर प्रणाम
आकी सराहना पाकर लेखन कर्म सफलता को प्राप्त हुआ जान पड़ता है
ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये आपका बहुत बहुत आभार सर जी

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 7:43pm

आदरणीय रविकर जी सादर प्रणाम
इन शुभकामनाओं के लिए ह्रदय से धन्यवाद आपका
स्नेह यूँ ही बनाये राखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 7:41pm

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सहमति के लिए आपका बहुत बहुत आभार
स्नेह यूँ ही बनाये राखिये
सादर प्रणाम

Comment by vijay nikore on February 6, 2013 at 6:39pm

आदरणीय संदीप कुमार जी:

भाव सराहनीय हैं, पढ़ना अच्छा लगा ।

सादर,

विजय निकोर

Comment by रविकर on February 6, 2013 at 6:01pm

जोशीला -मार्गदर्शन ||
शुभकामनायें आदरणीय ||


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2013 at 5:42pm

//संत बनने की सलाह इसीलिए है क्यंकि संत स्वयं का न हो के सकल समाज की पूँजी हो जाता है//

अद्भुत ! अवश्य-अवश्य !!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 5:35pm

आदरणीया डॉ प्राची जी सादर प्रणाम
इसमें अंतिम दो बंद बहुत कुछ छुपाये हुए हैं

सही मायने में ये मन का मारण अर्थात दुखी होने के लिए नहीं अपितु मोह को त्याग विरक्त हो जाने के लिए है अर्थात गृहस्थ न रहने की सलाह है
और भगवा धारण करने का अर्थ केवल साधू बनने के लिए नहीं है भगवा अर्थात केसरिया
या का अर्थ या नहीं  "यह" है,  यह छोड़ दिखावा ही है
संत बनने की सलाह इसीलिए है क्यंकि संत स्वयं का न हो के सकल समाज की पूँजी हो जाता है
इसीलिए सर्वसम्मानित है
आशा है की मेरे विचार से आप सहमत हो जायेंगी
अन्यथा इनके दो मायने समाहित करने में मैं असफल ही रहा हूँ
ये स्नेह और मार्गदर्शन यूँ ही बनए रखिये

आपका बहुत बहुत आभार

Comment by भावना तिवारी on February 6, 2013 at 5:33pm

PADHKAR AANANDIT HUI ...SARASATA LAGI....BADHAAI ..!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 5:27pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
आपका उत्साहवर्धन मेरे लेखन कर्म में उर्वरक की तरह और भावों के सम्प्रेषण में अर्थात क्रिया में उत्प्रेरक की तरह कार्य करते हैं
अपना स्नेह और आशीष यूँ ही मुझ पर बनाये रखिये ,

कृपया ध्यान दे...

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