For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"दिमाग़ी सोच से हट कर मैं दिल से जब समझता हूँ"

बह्रे हज़ज़ मुसम्मन सालिम
१२२२-१२२२-१२२२-१२२२

दिमाग़ी सोच से हट कर मैं दिल से जब समझता हूँ;
ज़माने की हर इक शै में मैं केवल रब समझता हूँ; (१)

ख़ुशी बांटो सभी को और सबसे प्यार ही करना,
यही ईमान है मेरा यही मज़हब समझता हूँ; (२)

मरुस्थल है दुपहरी है न कोई छाँव मीलों तक,
ये दुनिया जिसको कहती है वो तश्नालब समझता हूँ; (३)

कभी गाली, कभी फटकार तेरी, सब सहा मैंने,
मिला है आज हंस कर तू, तेरा मतलब समझता हूँ; (४)

फ़ितूर इस को कहो चाहे सनक या फिर मेरी आदत,
किसी को कुछ न समझूं मैं, किसी को सब समझता हूँ; (५)

लड़ा दो भाई से भाई बटोरो वोट देकर नोट,
चलन में जो सियासत के है हर करतब समझता हूँ; (६)

धुले ये पाँव तेरे माँ जहाँ पर भी उसी को मैं,
मेरी जन्नत समझता हूँ मेरा मश्रब समझता हूँ; (७)

बड़ा उजला था वो लम्हा गुज़ारा साथ जो तेरे,
फ़लक पर मेरी यादों के उसे कौकब समझता हूँ; (८)

परेशां था मेरा मन, मैं बड़ी उलझन में था लेकिन,
वो बच्चा हंस दिया हर दर्द मैं ग़ायब समझता हूँ; (९)

  • वाहिद काशीवासी / ०५०२२०१३.  

तश्नालब = प्यासे होंठ, मश्रब = पानी पीने की जगह, कौकब = बड़ा चमकदार सितारा

Views: 917

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Roshni Dhir on February 6, 2013 at 11:46am

bahut khubb.....

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 6, 2013 at 11:07am

आदरणीय विजय जी,

आपसे प्रोत्साहन प्राप्त हुआ आभारी हूँ! सादर,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 6, 2013 at 11:06am

भाई वीनस जी,

सच कहा बड़े दिनों के बाद मौक़ा मिला यहाँ कुछ साझा करने का! अपरिहार्य कारणों से इस मंच से काफ़ी समय दूर रहा! यहाँ तक कि पिछले दो तरही मुशाइरों में भी भाग नहीं ले सका! हालाँकि रचना कर्म सतत जारी रहा केवल साझा करना दुरूह हो गया था! यह ताज़ातरीन ग़ज़ल है जो सिर्फ़ दो दिनों में पूरी हो गयी है जो कि माँ शारदा का आशीर्वाद ही है! आपसे सराहना मिली तो लगा कि मेहनत का परिणाम अब द्रष्टव्य हो रहा है! साभार,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 6, 2013 at 11:03am

आदरणीय Saurabh जी

अगर अनायास ही ओबीओ पर आगमन न हुआ होता तो आज मैं यहाँ इस स्थिति में कदापि नहीं होता! सीखने-सिखाने के इस बेहतरीन मंच से मुझे बहुत कुछ मिला है और उसमें आपका आशीर्वाद भी सम्मिलित है! सादर,

Comment by विजय मिश्र on February 6, 2013 at 10:35am

२,५ ,७ ९ लाजवाव ,बाकी का भी जवाव नहीं . देश की बात दिल से निकली है और उसके हालात का जिकर भी संदीपजी  , शुक्रिया .

Comment by वीनस केसरी on February 6, 2013 at 4:20am

वाह संदीप भाई
बड़े दिन के बाद प्रकट हुए हैं और देर आयद दुरुस्त आयद ... वाली बात हो गई
शानदार ग़ज़ल कही है कई कई अशआर खूब पसंद आए
मैं जिन दो अशआर को कोट करूँगा और जो सबसे अधिक पसंद आए वो ये हैं -

फ़ितूर इस को कहो चाहे सनक या फिर मेरी आदत,
किसी को कुछ न समझूं मैं, किसी को सब समझता हूँ; ,,,, सानी की सादगी में कमाल का नशा है

लड़ा दो भाई से भाई बटोरो वोट देकर नोट,
चलन में जो सियासत के है हर करतब समझता हूँ;... करतब काफ़िया को इस शानदार ढंग से निभाने के लिए ढेरो दाद

वाह भाई वाह


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2013 at 12:48am

संदीप वाहिद भाई, आपकी ग़ज़ल से आपकी मशक्कत झलकती है. बहुत-बहुत बधाई .. .

ये दो शेर तो कमाल हुए हैं -

कभी गाली, कभी फटकार तेरी, सब सहा मैंने,
मिला है आज हंस कर तू, तेरा मतलब समझता हूँ; (४)

परेशां था मेरा मन, मैं बड़ी उलझन में था लेकिन,
वो बच्चा हंस दिया हर दर्द मैं ग़ायब समझता हूँ; (९)

बहुत खूब !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service