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=========ग़ज़ल=========
बहरे जदीद मुसद्दस महजूफ मक्फूफ़ मुतव्वी
वजन - 212 2121 2112

बात करना बड़ी बड़ी ही सही
झूठ हो या सही सही ही सही

इश्क के हर कदम पे वादे हों
तब तो करना है दोस्ती ही सही

गरचे दुनिया को ख़ुशी मिलती है
करते रहना है दिल्लगी ही सही

अश्क के घूँट इश्क में जो मिलें
उम्र भर रखना तिश्नगी ही सही

शर्म से मत झुकाओ यूँ नज़रें
करने दो थोड़ी मयकशी ही सही

राह में चल रहे हो जब तक तुम
करना मंजिल से आशिकी ही सही

भूल मत जाना हम गरीबों को
याद करना कभी कभी ही सही

उसमें डसने का हर हुनर है निहाँ
आँख खोली अभी अभी ही सही

जाते जाते तो बंदगी कर "दीप"
थोड़ी सी वक़्त की कमी ही सही

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 15, 2013 at 3:47pm
आदरणीय गणेश सर जी , आदरणीय प्रदीप सर जी , आदरणीय आशीष जी , आदरणीया डॉ प्राची जी सादर प्रणाम 
आप सभी ने ग़ज़ल पसंद की और अपने विचार रखे 
इस जर्रानवाजी के लिए आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 13, 2013 at 4:04pm

प्रेरणादायक

बधाई सादर संदीप जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 13, 2013 at 12:35pm

बहुत सुन्दर सीखें दी हैं आपने अपनी ग़ज़ल में, इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई प्रिय संदीप जी. 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 13, 2013 at 12:06pm

वाह संदीप भाई... सुन्दर गजल !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 13, 2013 at 10:33am

एक बार पुनः अच्छी ग़ज़ल, एक अलग ही कलेवर की रदीफ़ निभाया है भाई, दाद कुबूल करें ।

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