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रे मन करना आज सृजन वो / डॉ. प्राची

रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l

निश्छल प्रण से, शून्य स्मरण से
मूरत गढ़ना मृदु सिंचन से,
भाव महक हो चन्दन चन्दन
जो सोया चैतन्य जगा दे l

रे मन करना आज सृजन वो

भव सागर जो पार करा दे l

प्रबल अवनि हो, चकमक मणि हो
बधिर श्रव्य वह निर्मल ध्वनि हो,
शब्द कंप का निहित अर्थ हर
मन वीणा के तार गुंजा दे l

रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l

हृदय नभश्वर मापे अम्बर
अमिय पिए, कर मंथित सागर,
अमर सुधा रस छलक छलक कर
तृप्त करे, मन-प्राण भिगा दे l

रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l

निज सम्मोहन द्विजता बंधन
विलय करे हो ऐसा वंदन,
सत्य कटु और मधुर कल्पना
विलग! सेतु बन, मिलन करा दे l

रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l

 
*सस्वर गायन गणेश जी "बागी"

इस गीत का ऑडियो फाइल (MP3) यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करें ..

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 15, 2013 at 11:00am

प्रस्तुत रचना की गहनता व ओजस्व को मान देने के लिए तथा कथ्य के मर्म तक पहुँचने के लिए आभार आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 10, 2013 at 11:48am

मन ही है जो हमारे समक्ष सम्पूर्ण संसार रचता है। यदि यह उचित स्थान पर रमता है तो वह शक्ति देता है जो समस्त बंधनों को काटकर हमें मुक्ति की राह दिखाता है।

आपकी रचना में ओज और गहराई है।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 12, 2013 at 6:52pm

रचना की सराहना और अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार आदरणीया मंजरी पाण्डेय जी.

Comment by mrs manjari pandey on February 12, 2013 at 6:32pm

आदरणीया ,"    रे मन करना आज  सृजन वो   मन को भा गया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 3, 2013 at 10:38am

आपकी सदाशयता और शुभ्रता के लिए आभारी हूँ आदरणीय विजय जी. सादर.

Comment by vijay nikore on February 3, 2013 at 8:27am

आदरणीया प्राची जी:

अभी-अभी पूजा करते हुए आपकी आवाज़ में आपका गीत सुना।

अच्छा लिखा है, अच्छा गाया है .. you are gifted.

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 2, 2013 at 4:42pm

आदरणीय विजय मिश्र जी, इस रचना निहित गहन तन्मयता को अंगीकार करने के लिए आपका हार्दिक आभार .

Comment by विजय मिश्र on February 2, 2013 at 1:49pm

काव्य है या अधि आत्म का लयबद्ध स्वर ,जैसे जैसे इसके साथ बढते हैं ,मन शिथिल और आत्मा तन्मय होती जाती है , जागरण का भाव सृजित होता जाता है . बहुत सुंदर आदेश भरा गीत .

"रे मन करना आज सृजन वो

      जो भव सागर पार करा दे | "     वाह 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 2, 2013 at 9:48am

इस रचना को सराह अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करने केलिए आभार आ. अविनाश जी 

Comment by AVINASH S BAGDE on February 1, 2013 at 7:47pm

भाव महक हो चन्दन चन्दन
जो सोया चैतन्य जगा दे l..wah..

निज सम्मोहन द्विजता बंधन
विलय करे हो ऐसा वंदन,
सत्य कटु और मधुर कल्पना
विलग! सेतु बन, मिलन करा दे l..bahut umda

रे मन करना आज सृजन वो
जो भव सागर पार करा दे l..badhai Prachi ji

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