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(फाँसी से कम नहीं )

(फाँसी  से कम नहीं )



इन्हें फाँसी  पर लटका दो 
या गोलियों से मरवा दो 
बलात्कारियों की रूह काँप जाए 
इन्हें ऐसी कड़ी सजा दो 
इन दरिंदों को जिंदा न छोड़ो 
पहले इनके हाथ पाँव तोड़ो 
जिंदा सूली पर लटका दो 
लाश चील कव्वों को खिला दो 
इनके घिनोने जुर्म की 
और सज़ा  न कोई 
शर्मसार है भारत माँ 
माएँ फूट फूट कर रोई
हद कर दी हैवानियत की 
जली होली  इंसानियत की
कड़े कर दो कानून नियम 
जलाओ चिता शैतानियत की 
दिल में दर्द है आँखे नम 
चारों तरफ है ग़म ही ग़म 
दुआ को उठ रहे हाथ करोड़ों 
वेशर्मों को न कोई शर्म 
खुश हो रस्सी खेंचूँगा मैं 
इक पैसा तक न लूँगा मैं 
मुफ्त में अपनी सेवा दूँगा 
जल्लाद बनने को हूँ तेय्यार 

दीपक 'कुल्लुवी'
18-12-12
खबर :- दिल्ली में पाँच बदमाशों नें लड़की से गैंगरेप किया लड़की सीरियस I   

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Comment by Deepak Sharma Kuluvi on December 22, 2012 at 4:01pm

 शुक्रिया सौरभ जी राजेश कुमारी जी अरुन भाई जो आप साथ हो 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 21, 2012 at 11:36am

दीपक सर बिलकुल सत्य है यह आक्रोश तो एक न एक दिन होना ही था, आखिर कब तक हम सब यूँ मौन रहकर टकटकी निगाहों से यूँ ही देखते रहेंगे बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2012 at 12:44am

आपके आक्रोश को मिले शब्द से हम सभी इत्तफ़ाक़ रखते हैं, दीपकजी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 20, 2012 at 12:48pm

आदरनीय दीपक कुल्लुवी जी ये  आक्रोश की ज्वाला हर किसी के हृदय में धधक रही है ये तभी शांत होगी जब उन दरिनों को फांसी पर लटकाया जाएगा आपके विचारों को नमन 

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