धरती अम्बर से कहे ,सुना प्रेम के गीत
अम्बर धरती से कहे, दिवस गए वो बीत
दिवस गए वो बीत ,मुझे कुछ दे न दिखाई
कोलाहल के बीच,तुझे देगा न सुनाई
जन करनी के दंड, अभागिन प्रकृति भरती
किस विध मिलना होय ,तरसते अम्बर धरती
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Comment
प्रिय सीमा जी आपकी टिपण्णी हमेशा नव उत्साह नव प्रोत्साहन प्रदान करती है जिसकी प्रतीक्षा करती है कोई भी रचना ,हार्दिक आभार आपका
दिवस गए वो बीत ,मुझे कुछ दे न दिखाई
कोलाहल के बीच,तुझे देगा न सुनाई ...बहुत खूब ... अच्छे भावों का इस प्रकार के शब्दों में अनुवादित हो जाना सोने में सुहागे की तरह होता है
बहुत बहुत बधाई
अशोक कुमार रक्ताले जी कुंडलिया की सराहना हेतु हार्दिक आभार
जन करनी के दंड, अभागिन प्रकृति भरती
किस विध मिलना होय ,तरसते अम्बर धरती
वाह! बहुत सुन्दर कुंडलिया के लिए सादर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरेया राजेश जी.
सधन्यवाद स्वागत है
मेरी कुंडलिया की इतनी सुन्दर समीक्षा हेतु बहुत बहुत हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण जी
जन करनी के दंड, अभागिन प्रकृति भरती
किस विध मिलना होय ,तरसते अम्बर धरती
बहुत ही सही कहाँ अपने आदरेया राजेश कुमारी जी,वायु प्रदुषण, ध्वनि प्रदुषण, जल प्रदुषण
सब मानव की करनी के परिणाम स्वरुप प्रक्रति में संतुलन बिगड़ रहा है, सुन्दर कुण्डलियाँ छंद
के माध्यम से बात कहने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे
आदरणीय गणेश जी आपको कुंडलिया पसंद आई आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार
//दिवस गए वो बीत, मुझे न दे कुछ दिखाई
कोलाहल के बीच,तुझे देगा न सुनाई//
सुन्दर कुण्डलिया छंद , आदरणीया राजेश कुमारी जी, इस संदेशात्मक रचना हेतु कोटिश: बधाई स्वीकार करें |
प्रिय प्राची जी आपकी सुखद प्रतिक्रिया पाकर मन खुश हुआ बहुत बहुत हार्दिक आभार आपका
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