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(1)

(तालिबानी फरमान न मानने वाली छात्रा बिटिया मलाला को समर्पित) 

सुंदरी सवैया

उगती जब नागफनी दिल में, मरुभूमि बबूल समूल सँभाला ।
बरसों बरसात नहीं पहुँची, धरती जलती अति दाहक ज्वाला ।
उठती जब गर्म हवा तल से, दस मंजिल हो भरमात कराला ।
पढ़ती तलिबान प्रशासन में, डरती लड़की नहीं ढीठ मराला ।।

(2)

विषकुम्भम पयोमुखम

मत्तगयन्द सवैया


बाहर की तनु सुन्दरता मनभावन रूप दिखे मतवाला ।
साज सिँगार करे सगरो छल रूप धरे उजला पट-काला ।
मीठ विनीत बनावट की पर दंभ भरी बतिया मन काला ।
दूध दिखे मुख रूप सजे पर घोर भरा घट अन्दर हाला ।।

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Comment

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Comment by रविकर on October 13, 2012 at 11:26am

आदरणीय भाई अम्बरीश जी
आप लोगों का सानिध्य और OBO की कृपा -
आदरणीय सौरभ जी ने जगाया है इस रूचि को -
आभार आदरणीय ||
आदरणीय मैंने एक खंड काव्य रचा है, परन्तु अशुद्धियों के भय से प्रकाशित करने की योजना नहीं बना पा रहा हूँ-
अगर कुछ मार्गदर्शन मिल पाए तो कृपा होगी |
सादर

श्री राम की सहोदरी : भगवती शांता

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 13, 2012 at 11:15am

अति सुन्दर सुन्दरि छंद रचा रविभ्रात प्रभातहि ज्ञान उजाला................

श्री रविकर जी, अति सुन्दर शिल्पयुक्त सामयिक सवैया छंद के लिए हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

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