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(बहरे रमल मुसम्मन मख्बून मुसक्कन

फाइलातुन फइलातुन फइलातुन  फेलुन.

२१२२     ११२२     ११२२    २२)

 

जब भी हो जाये मुलाक़ात बिफर जाते हैं

हुस्नवाले भी अजी हद से गुजर जाते हैं

 

देख हरियाली चले लोग उधर जाते हैं

जो उगाता हूँ उसे रौंद के चर जाते हैं

 

प्यार  है जिनसे मिला उनसे शिकायत ये ही

हुस्नवाले है ये दिल ले के मुकर जाते हैं

 

माल लूटें वो जबरदस्त जमा करने को

रिश्तेदारों के यहाँ शाम-ओ-सहर जाते हैं

 

घर बनाने को चले जो भी नदी को पाटें   

बाढ़ में बह के वही लोग बिखर जाते हैं  

 

बाढ़ जनता की मुसीबत है अफ़सरों  का मज़ा

उनके बिगड़े हुए हालात सुधर जाते है

 

प्यार से जब भी मिले प्यार जताया 'अम्बर'

क्यों ये कज़रारे नयन अश्क से भर जाते हैं

--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 12, 2012 at 2:04pm

आदरणीय भाई जी, आपकी इस ग़ज़ल के मतले और उद्धृत शेरों पर ध्यान ही नहीं गया था, खूब मंथन हुआ था. अब बहुत कुछ सधा हुआ है. ओबीओ की यही तो खासियत है.

सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 12, 2012 at 2:02pm

आदरेया राजेश कुमारी जी,

आभारी हूँ कि आपने मतले को सकारात्मक दृष्टि से ही परखा ....

//माल लूटें वो जबरदस्त जमा करने को

रिश्तेदारों के यहाँ शाम-ओ-सहर जाते हैं-------चोर है क्या ?//

केवल चोर ही नहीं वरन डकैत हैं डकैत .........क्योंकि रिश्तेदारी का सीधा ताल्लुक स्विट्जरलैंड आदि से ही है .....

एक-एक शेर की समीक्षा करके दाद देने के लिए आपके प्रति हार्दिक धन्यवाद ! सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 12, 2012 at 1:51pm

आदरणीय अशोक जी,

आपके द्वारा की गयी सराहना के लिए हार्दिक आभार मित्रवर !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 12, 2012 at 1:49pm

शरीफ साहब,

आपने मतले में जम के पहलू की बात की है ....

जैसा कि मैं भाई वीनस जी को स्पष्ट कर चुका हूँ .....कि 'पसर' जाने से हमारा तात्पर्य रुकने ओर टिक जाने से ही था परन्तु इसके द्विअर्थी होने की तरफ़ मैंने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया था.....अतः इसे सुधार कर 'बिफर' कर दिया है | हालाँकि इस ग़ज़ल को मैं बज़्म-ए-सुखन की नशिस्त में पढ़ चुका हूँ परन्तु आश्चर्य है कि इस ओर किसी ने भी इंगित नहीं किया  ! इसे इंगित करने के लिए आपका व वीनस  साहब का बहुत-बहुत शुक्रगुज़ार हूँ |

आप शायद अब  निराश न हों ...

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 12, 2012 at 1:38pm

आदरणीय भाई वीनस केसरी जी

'पसर' जाने से हमारा तात्पर्य रुकने ओर टिक जाने से ही था परन्तु इसके द्विअर्थी होने की तरफ़ मैंने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया था.....अतः इसे सुधार कर 'बिफर' कर दिया है | हालाँकि इस ग़ज़ल को मैं बज़्म-ए-सुखन की नशिस्त में पढ़ चुका हूँ परन्तु आश्चर्य है कि इस ओर किसी ने भी इंगित नहीं किया  ! इसे इंगित करने के लिए आपका व शरीफ साहब का बहुत-बहुत शुक्रगुज़ार हूँ | दोहों पर भी आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है !

अब यह मतला कुछ इस प्रकार से है ...

जब भी हो जाये मुलाक़ात बिफर जाते हैं

हुस्नवाले भी अजी हद से गुजर जाते हैं


आपसी बातचीत संबंधी व्यस्तता में हुए ध्यान भंग की वजह से आये हुए 'तकबुले रदीफ' को निम्न प्रकार से दूर कर दिया है ....

देख हरियाली चले लोग उधर जाते हैं

जो उगाता हूँ उसे रौंद के चर जाते हैं

प्यार  है जिनसे मिला उनसे शिकायत ये है

हुस्नवाले है ये दिल ले के मुकर जाते हैं

माल लूटें वो जबरदस्त जमा करने को

रिश्तेदारों के यहाँ शाम-ओ-सहर जाते हैं.....     वैसे यह शेर  का ताल्लुक स्विट्जरलैंड से है फिर भी  इस शेर की बेहतरी के लिए

                                                               कृपया  इस्लाह करें .....

प्यार से जब भी मिले प्यार जताया 'अम्बर'

क्यों ये कज़रारे नयन अश्क से भर जाते हैं         शायद किसी पश्चाताप के आँसू ही होंगे भाईजी .......

आप शायद अब  निराश न हों ....

इस गज़ल पर विस्तृत प्रतिक्रिया देने हेतु आपका दिली शुक्रिया .....


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 10:54am

वाह वाह वाह आदरणीय अम्बरीष भाई जी, बहुत ही प्यारी सी ग़ज़ल कही है. मतला-ए-सानी कमाल का बना है, बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 12, 2012 at 9:37am

जब भी हो जाये मुलाक़ात पसर जाते हैं

हुस्नवाले भी अजी हद से गुजर जाते हैं-------पहले फंसाना फिर पीछा छुड़ाना 

 

देख हरियाली चले लोग उधर जाते हैं

जो उगाता हूँ वहाँ रोज वो चर जाते हैं-------कोई चुम्बकीय आकर्षण होगा 

 

प्यार  है जिनसे मिला उनसे शिकायत कैसी

देख तिरछी सी नज़र हम भी सिहर जाते हैं---------प्यार में गिले शिकवे कैसे 

 

माल लूटें वो जबरदस्त जमा करने को

रिश्तेदारों के यहाँ शाम-ओ-सहर जाते हैं-------चोर है क्या ?

 

घर बनाने को चले जो भी नदी को पाटें   

बाढ़ में बह के वही लोग बिखर जाते हैं  ----वाह वाह प्रकृति का रोष तो झेलना ही पड़ेगा 

 

बाढ़ जनता की मुसीबत है अफ़सरों  का मज़ा

उनके बिगड़े हुए हालात सुधर जाते है----------बढ़िया कटाक्ष प्राकृतिक त्रासदी में हाथ सेंकते हैं अधिकारी 

 

प्यार से जब भी मिले प्यार जताया 'अम्बर'

क्यों ये कज़रारे नयन अश्क से भर जाते हैं---------कोई तो गिला होगा !!

अम्बरीश जी बधाई इस ग़ज़ल के लिए 

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 12, 2012 at 7:55am

बाढ़ जनता की मुसीबत है अफ़सरों  का मज़ा

उनके बिगड़े हुए हालात सुधर जाते है

बहुत सुन्दर शेर बधाई स्वीकार करें आदरणीय अम्बरीष जी.

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on October 12, 2012 at 12:57am

zam ke pehlu ke sath ghazal ke shuru hone ne nirash kiya ambresh ji 

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2012 at 12:33am

जब भी हो जाये मुलाक़ात पसर जाते हैं

हुस्नवाले भी अजी हद से गुजर जाते हैं..........

हुस्न वालों का हद से गुज़र कर मुलाक़ात होते ही पसर जाना ???

हुजूर  जो अभिप्राय निकल रहा है उसे स्वीकार कर पाना कठिन है वह भी तब जब कोई अभी अभी नारी शक्ति पर आपके दोहे को पढ़ कर आ रहा हो
आपके इस शेर ने बहुत निराश किया है

देख हरियाली चले लोग सभी आते हैं

जो उगाता हूँ यहाँ रोज वो चर जाते हैं  .......  तकाबुले रदीफ  का ऐसा बड़ा दोष  !!!
 

प्यार  है जिनसे मिला उनसे शिकायत कैसी

देख तिरछी सी नज़र हम भी सिहर जाते हैं..... औसत

 

माल लूटें वो जबरदस्त जमा करने को

रिश्तेदारों के यहाँ शाम-ओ-सहर जाते हैं..... शेर और बेहतर हो सकता है

 

घर बनाने को चले जो भी नदी को पाटें   

बाढ़ में बह के वही लोग बिखर जाते हैं  

 

बाढ़ जनता की मुसीबत है अफ़सरों  का मज़ा

उनके बिगड़े हुए हालात सुधर जाते है.................. बढ़िया

 

प्यार से जब भी मिले प्यार जताया 'अम्बर'

क्यों ये कज़रारे नयन अश्क से भर जाते हैं

भाई जी  कोई  आपसे प्यार से मिले और बदले में आप भी प्यार जताएं तो इसमें अश्क की बात कहां से आ गई , बात तो तब है कि कोई आपसे बेरुखी से मिले और आप उसपर भी प्यार लुटाएं तो पशेमानी नयनों  अश्क से भर जाये

या आपने खुशी के आंसू की बात की है ? मामला तब भी नहीं जम रहा ...


आदरणीय अम्बरीश जी,
क्षमा प्रार्थी हूँ  परन्तु  इस सरल जमीन पर आपसे स्तरीय ग़ज़ल की अपेक्षा है और इस ग़ज़ल ने निराश किया है क्योकि आपने हमेशा अपनी ग़ज़लों से मुझे वाह वाह कहने को मजबूर किया है 
सादर

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