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पुढील स्टेशन (लघु कथा)

तेज लोकल में मध्यम ध्वनि गूँजी, “पुढील स्टेशन अँधेरी”.

“यार ये पुढील स्टेशन का मतलब पुलिस स्टेशन है क्या”? देव ने अजय से पूछा.

अजय बोला, “पता नहीं यार. मैंने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया”.

तभी उनके बगल में खड़ा एक लड़का बोला, “तुम साला भैया लोग यहाँ बस तो जाता है, लेकिन यहाँ का लैंग्वेज सीखने में तुम्हारा नानी मरता है”.

“ए छोकरा ये बातें नेता लोग के वास्ते ही रहने देने का. उनका धंधा इसी से चलता है. हम लोग एक देश का है और अपन को मिलजुल के रहना माँगता”. वहीं बैठे बुजुर्ग ने उस लड़के को समझाया.

वह लड़का तैश में आ गया और देव का कालर पकड़कर बोला, “बाबा ये लोग यहाँ आकर भीड़ बढ़ाया और हमारा नौकरी छीन लिया. मैं तेरे को बताता है पुढील स्टेशन का मतलब. पुढील स्टेशन का मतलब होता है अगला स्टेशन”. इतना कहकर उसने देव को मारने के लिए अपना हाथ उठाया, लेकिन एक पुलिसवाले ने पीछे से उसका हाथ पकड़ लिया.

पुलिसवाला, “साला टपोरी बाजूवाले डिब्बे में मेरा पर्स मारकर यहाँ लेक्चर पिला रेला है. चल तेरा लेक्चर मैं आराम से सुनेगा”.

उस लड़के को पुलिसवाला ले जाने लगा, तो बुजुर्ग ने मुस्कुराते हुआ पूछा, “पुढील स्टेशन”?

लोकल के भीतर बैठी भीड़ एक साथ बोली, “पुलिस स्टेशन”.

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Comment by SUMIT PRATAP SINGH on October 4, 2012 at 10:15am

सौरभ पाण्डेय जी नमस्कार व शुक्रिया. लोकल में उत्तर भारतीय इन टपोरियों के लोकलपन को झेलने के आदी हो चुके हैं....

Comment by SUMIT PRATAP SINGH on October 4, 2012 at 10:13am

योगराज प्रभाकर जी नमस्कार एवं शुक्रिया. ऐसे टपोरियों का पुढील स्टेशन पुलिस स्टेशन होना चाहिए, किन्तु दुर्भाग्य यह है, कि ये टपोरी सत्ता में सेंध लगाकर घुस चुके हैं. क्या कीजिएगा?


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2012 at 9:20pm

’पुढ़े सरका’  सुन-सुन कर हम भी कसमस करते, दाँत भींचते, हम भी उन लोकल में बढ़ते रहे हैं.. . सही है, गंदगी बाहर नहीं भीतरी सोच की है. ऐसे टपोरियों की बात साझा कर आपने बहुत सही इशारा किया है. बधाई.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 3, 2012 at 4:53pm

बहुत सुन्दर लघुकथा कही है भाई सुमित प्रताप सिंह जी, बिलकुल दुरुस्त फरमाया है आपने कि ऐसे टपोरियों का पुढील स्टेशन अब सिर्फ पुलिस स्टेशन ही है.

Comment by SUMIT PRATAP SINGH on October 3, 2012 at 11:12am

गणेश जी "बागी" जी नमस्कार! पहले तो आपका कमेन्ट करने हेतु आभार. बागी जी आपने जिस पंक्ति को कोट किया है, असल में वही तो इस लघु कथा की आत्मा है और आपने उसे खोज लिया. एक बार फिर से शुक्रिया...

Comment by SUMIT PRATAP SINGH on October 3, 2012 at 11:08am

शुक्रिया कुमार गौरव अजीतेन्द्र जी...

Comment by SUMIT PRATAP SINGH on October 3, 2012 at 11:08am

शुक्रिया राजेश कुमारी जी...


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 3, 2012 at 9:07am

सुमित जी, यह लघुकथा एक साथ कई कई सन्देश दे जाती है, क्षेत्रवाद के नाम पर टपोरियों द्वारा आम लोगो से दुर्भाव, आम शहरी की सोच, दोमुहापना ...सब कुछ तो है इस कथा में | मैं एक पक्ति को कोट करना चाहूँगा जो इस लघु कथा में मुझे सबसे अच्छी लगी, वो है ..

//ए छोकरा ये बातें नेता लोग के वास्ते ही रहने देने का. उनका धंधा इसी से चलता है. हम लोग एक देश का है और अपन को मिलजुल के रहना माँगता//

वाह वाह, सुमित जी, दिल जीत लिया, बहुत खूब, इस शानदार अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें |

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 3, 2012 at 8:18am

सुन्दर कहानी.........बधाई.........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 2, 2012 at 8:52pm

बहुत अच्छी रोचक घटना 

कृपया ध्यान दे...

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