For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ३६ (साबुन की तरह इश्क भी इकरोज़ गल गया)

ऐसा लगता है कि इस ग़ज़ल की बह्र तरही मुशायरे २७ की ग़ज़ल की ही है. रदीफ़ तो वही है, पर काफिया अलग. मैंने शेर वज़न और बह्र में कहने की कोशिश तो की है, पर मेरे आलिम दोस्त ही बताएंगे कि मैं कोशिश में कितना कामयाब हुआ.

 

लम्हा-ए-दीदनी-ओ-नज़ारा-ए-पल गया

वो माह बनके अर्श पे आया निकल गया

 

गर्दूं में शब की चांदनी हौले से आ बसी

रोज़ेविसालेयार भी आखिर में ढल गया

 

मिटने लगे हैं फर्क अब दिन रात के सभी

मौसम हमारे शह्र का कितना बदल गया

 

हस्ती कोई ख्याल थी लम्हे में वा हुई  

कागज़ सा कोई ख़ाब था इक लौ से जल गया

 

सच्चाइयां पहाड़ सी आईं लबेनिगाह

सपनों को कोई देवता जैसे निगल गया  

 

मिट्टी की तरह हसरतें पानी में बह गईं

साबुन की तरह इश्क भी इकरोज़ गल गया

 

होती थी तेरे फ़िक्र से गर्मी मिजाज़ को   

यख का कोई पहाड़ था ये दिल पिघल गया

 

हासिल हुईं सब नेमतें अल्लाह की हमें   

मिटना था तेरे इश्क में लेकिन संभल गया

 

झूठी तसल्लियों से गुज़ारा करें क्या राज़

उनके मरीज़े इश्कका कब दिल बहल गया  

 

© राज़ नवादवी

अहमदाबाद, प्रातःकाल ०९.३२, २९/०९/२०१२

 

लम्हा-ए-दीदनी-ओ-नज़ारा-ए-पल- देखने योग्य क्षण और क्षण भर का दृश्य; माह- चाँद; अर्श- आसमान; गर्दूं- आकाश; शब- रात; रोज़ेविसालेयार- प्रियतम से मिलाने का दिन; वा हुई – खुली, प्रकट हुई; लबेनिगाह- दृष्टि में; यख- बर्फ; नेमतें- कृपाएं, फैज़, अनुकम्पा में दी गईं चीज़ें 

Views: 425

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on October 3, 2012 at 9:33am

आदरणीया राजेश जी, आपका तहेदिल से शुक्रिया. शिल्पगत त्रुटियों पे काम का जारी है. आप सुधीजनों की प्रतिक्रियाएं अवश्य रंग लाएगी. 

'कब तलक पसे हिजाब वो मुंह छुपाएगी 

ज़िंदगी इक रोज़ अपना चेहरा दिखाएगी'.

ओबीओ की कार्यकारिणी में आपके सम्मिलित किए जाने की खबर पढ़कर दिल को बहुट सुकून मिला. आपके मार्गदर्शन में इस प्रयास के और नई उचाईयों तक पहुँचाने का मार्ग प्रशस्त हुआ. आपको हार्दिक बधाई!

- राज़ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 29, 2012 at 8:27pm

राज नवद्वी जी बहुत उम्दा ग़ज़ल लिखी है आपने किन्तु कुछ शेरों में मात्राएँ मुझे गड़बड़ लग रही हैं जैसे की २७ की ग़ज़ल में बहर वज्न में २२ मात्राएँ हर पंक्ति में हैं उसी के अनुसार कह रही हूँ या किसी पंक्ति में किसी वर्ण को दो से ज्यादा बार गिराया जा सकता है ये दिग्गज लोग ही बताएँगे क्यूंकि मैं भी तिलकराज जी की कक्षा की स्टुडेंट ही हूँ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
8 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service