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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २९ (हम बग़दाद के नहीं, हिन्द के जुनैद हैं)

मर्गोजीस्त के राज़ मेरे सीने में कैद हैं

हम बग़दाद के नहीं, हिन्द के जुनैद हैं

 

खुशी होती तो मर न गए होते कब के

जीरहें है कि गममें मुब्तलाओमुस्तैद हैं   

 

दिल कोई तिफ्लहै पूछे है तेरी तस्वीरसे

इक मुझ को ही तेरे दीदार क्यूँ नापैद हैं  

 

रोज़ेकारेमाशी शामेमैकशी शबेख्वाबीदगी 

न जाने हम कबसे बामशक्कत बाकैद हैं

 

'राज़' की उम्र हुई है, पे अन्वार बाकी है

जुज़ आँखकी पुतली सारे उज़व सुफैदहैं

 

© राज़ नवादवी

भोपाल, ०६.१५ संध्याकाल, १७/०९/२०१२

 

मर्गोजीस्त- मौत और जिन्दगी; जुनैद- बग़दाद के इक बहुत बड़े ऋषी; मुब्तलाओमुस्तैद- डूबे और सावधान; तिफ्ल- बच्चा; दीदार- दर्शन; नापैद- अप्राप्य; रोज़ेकारेमाशी शामेमैकशी शबेख्वाबीदगी- दिन पैसे कमाने के, शाम शराब पीने की, और रात सोने की, अन्वार- नूर का बहुवचन, प्रकाश; जुज़- सिवा; अज्व- अंग   

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Comment

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Comment by राज़ नवादवी on September 20, 2012 at 4:47pm

सीमा जी, बहुत बहुत शुक्रिया!

Comment by राज़ नवादवी on September 20, 2012 at 4:40pm

आदरणीय डाबरे साहेब, हम आपकी इस तारीफ़ के काबिल तो नहीं, मगर आपके लफ़्ज़ों के पीछे छुपे आपके जज़्बात को आपका दिया नायाब तोहफा समझके क़ुबूल करते हैं और दिल से आपका शुक्राना. खास आपके लिए ये शेर फरमाता हूँ जो बेसाख्ता मेरी जुबां पे अभी अभी आया - 

निस्बतें बढ़ीं यूँ हमसे ज़माने की हौले हौले 

खुलती गईं सब तहें अफ़सानेकी हौले हौले 

- राज़ नवादवी 

Comment by प्रमेन्द्र डाबरे on September 20, 2012 at 4:19pm

राज भाई आप इस ज़माने के नहीं सदियों के शायर हैं, मर्गोजीस्त के राज़ मेरे सीने में क़ैद हैं हम बगदाद के नहीं हिंद के जुनैद हैं. एक और बेहतरीन ग़ज़ल जिसे पढ़ कर आदमी सन्न रह जाये........ आप लाजवाब हैं हमें आपकी और ग़ज़लों का इंतज़ार है..................... प्रमेन्द्र डाबरे

Comment by seema agrawal on September 20, 2012 at 12:00am

रोज़ेकारेमाशी शामेमैकशी शबेख्वाबीदगी 

न जाने हम कबसे बामशक्कत बाकैद हैं........वाह के सिवा और क्या कहा जाये 

राज़' की उम्र हुई है, पे अन्वार बाकी है

जुज़ आँखकी पुतली सारे उज़व सुफैदहैं............दिल को छूने वाला शेर 
शब्दों के अर्थ साथ में देने से समझना आसान हो गया इसके लिए शुक्रिया 

Comment by राज़ नवादवी on September 19, 2012 at 11:20pm

शुक्रिया आदरणीया राजेश जी, आपकी दाद का मग्नून हूँ जो हमेशा हम जैसों का हौसला बढाती है. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 19, 2012 at 12:33pm

मर्गोजीस्त के राज़ मेरे सीने में कैद हैं

हम बग़दाद के नहीं, हिन्द के जुनैद हैं

 मतले से ही ग़जब की ग़ज़ल का आग़ाज हुआ

 

रोज़ेकारेमाशी शामेमैकशी शबेख्वाबीदगी 

न जाने हम कबसे बामशक्कत बाकैद हैं

 और ये शेर भी बहुत पसंद आया दिली दाद कबूल करें राज़ नवादवी जी  |

Comment by राज़ नवादवी on September 19, 2012 at 11:03am

आदरणीय योगराज जी, आप जैसे सुधीजनों की प्रशंसा पा कर दिल फूले नहीं समाता. बहुत बहुत धन्यवाद. 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 19, 2012 at 10:57am

//मर्गोजीस्त के राज़ मेरे सीने में कैद हैं
हम बग़दाद के नहीं, हिन्द के जुनैद हैं//
.
वाह वाह वाह - बेहद दिलकश मतला राज़ साहिब, दाद कबूल फरमाएं.

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