For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जैसे
ठहरा हुआ समंदर कोई
गहरे नीले रंग से रंगा...ऐसा आसमाँ
दूर दूर तक फैला  हुआ...
जिसके किसी छोर पर
तुम हो...
किसी छोर पर मैं हूँ
और
हम दोनों के बीच
ये तैरता हुआ सफ़ेद मोती....
सब कुछ वैसा ही है/ कुछ नहीं बदला
बस बदल गयीं हैं,
इस समंदर से अपनी शिकायतें |
पहले ये बहुत छोटा लगता था हमें,
और अब ये समन्दर ख़त्म ही नहीं होता
....मीलों तक......

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Views: 339

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pushyamitra Upadhyay on September 3, 2012 at 8:55pm

saurabh sir, rajesh didi, yogyata ji
आप सभी का आशीष पाकर अभिभूत हूँ, अपने विचारों को बस उकेरा भर था OBO के आँगन में मैंने...आपके आशीष ने उसे धन्य कर दिया...अनुज का प्रणाम स्वीकार कीजिये.....

Comment by Yogyata Mishra on September 2, 2012 at 11:48pm

owsm...!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2012 at 7:33pm

सब कुछ वैसा ही है/ कुछ नहीं बदला
बस बदल गयीं हैं,
इस समंदर से अपनी शिकायतें |
पहले ये बहुत छोटा लगता था हमें,
और अब ये समन्दर ख़त्म ही नहीं होता
....मीलों तक......परिस्थतियों का गुलाम है वक़्त हालात बदलते रहते हैं ---बहुत बेहतरीन रचना 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 2, 2012 at 7:27pm

भाई पुष्यमित्र जी, आसमान, उसकी निरभ्रता और मोती का संकेत भोगती हम-तुम की सनातन इकाई.  वाह ! क्या ही सुन्दर रचना बन पड़ी है ! बधाई हो !!

सब कुछ वैसा ही है / कुछ नहीं बदला
बस बदल गयीं हैं,
इस समंदर से अपनी शिकायतें |
पहले ये बहुत छोटा लगता था हमें,
और अब ये समन्दर ख़त्म ही नहीं होता
....मीलों तक......

वाह !

समय के साथ लगातार जटिल होती जा रही परस्पर भावनात्मक निर्भरता के एक अवगुंठित आयाम को मुलामियत से उघारती इस भाव-रचना पर हृदय से बधाई स्वीकार करें.

निरंतर लिखते रहें, भाई.   हार्दिक शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service