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बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०१
चांदनी रात थी,
उजला आकाश था..
नदियों में लहरे,
और नीला प्रकाश था..
मछलियों की वो गुनगुनाहट,
और हर-हराती लहरे..
क्या खूब नज़ारा,
मन क्यों न अब उसपर ठहरे..

बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०२
फिर शांत हुई लहरे,
मेरा चेहरा सामने आया..
जैसे
नदियों ने मुझे,
गोद में था बैठाया..
सुकून  इतना मिला,
जैसे पा लिया ईश्वर को.
जैसे मिल गई हो छत,
मेरे सूने इस सर को...
बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०३

सूरज की किरणे जब निकली,
तब पलकों को झपकाया.
जैसे लगा मुझे, मैं स्वर्ग से घूम कर आया..
बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०४

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Comment by Pradeep Kumar Kesarwani on September 1, 2012 at 10:29am

रेखा जी.. तहे दिल से आपको धन्यवाद्

Comment by Pradeep Kumar Kesarwani on September 1, 2012 at 10:29am

राजेश कुमारी जी....
सुक्रिया आपका

Comment by Rekha Joshi on August 31, 2012 at 9:08pm

सूरज की किरणे जब निकली, 
तब पलकों को झपकाया. 
जैसे लगा मुझे, मैं स्वर्ग से घूम कर आया.. 
बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए.,खूबसूरत सपने प्रदीप जी ,बहुत बहुत बधाई इस सुंदर रचना पर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 31, 2012 at 7:06pm

मेरा चेहरा सामने आया.. 
जैसे
 नदियों ने मुझे, 
गोद में था बैठाया.. 
सुकून  इतना मिला, 
जैसे पा लिया ईश्वर को. 
जैसे मिल गई हो छत, 
मेरे सूने इस सर को.---सुन्दर पंक्तियाँ 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 2:39pm

यह पढ़कर ख़ुशी हुई की आपको सपने में सकून मिला जैसे इश्वर पा लिए इस सुन्दर सुनहरे अहसास की लिए हार्दिक बधाई |

कृपया ध्यान दे...

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