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राह तकती है तुम्हारी,
आज यह सूनी कलाई....

स्मृति बस स्मृति ही ,
शेष है सूने नयन में
बिम्ब दिखता है तुम्हारा,
आज मधु मंजुल सुमन में
यूँ लगा कि द्वार खुलते
ही मुझे दोगी दिखाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई.........................

आरती की थाल कर में
दीप आशा का जलाये
इस धरा पर कौन है जो
नेह की सरिता लुटाये
श्रावणी वर्षा हृदय में
आज मेरे है समाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई.........................

रेशमी धागों की अब भी
इस कलाई पर छुअन है
हो रहा अहसास कि
नजदीक ही मेरी बहन है
वह प्रतीक्षा कर रही है
हाथ में थामे मिठाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई........................

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

Views: 1707

Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2012 at 4:42pm
//आज जाना कि कविता लिखी नहीं जाती, जन्म लेती है.//
भाई अरुणजी, बस यही सरसता सभी की ओर संप्रेषित हो.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 2, 2012 at 4:16pm

सौरभ जी की गोद है, अम्बरीष के काँध |

प्राची अलबेला रहे , मुझको ढाढस बाँध ||

मुझको ढाढस बाँध, यही परिवार कहाये |

सुख दुख में दे साथ, वही रिश्ता कहलाये ||

लिखे हमेशा कलम ,आज आँसू ने लिख दी |

अपनों को आभार , बता दें प्रिय सौरभ जी ||

आज मन कुछ अधिक ही भावुक हो गया है, आदरणीअ अम्बरीष जी, अलबेला जी, प्राची जी तथा सौरभ जी का ह्र्दय से आभार. आज जाना कि कविता लिखी नहीं जाती, जन्म लेती है.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 2, 2012 at 4:03pm

कौन भला दे पायगा, यहाँ समय को मात.

श्रावण तो है जा चुका, आँखों से बरसात..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 2, 2012 at 3:55pm

आँखों में बरसात हो, मचलें हो अहसास |

कैसी श्रावन पूर्णिमा, कैसा श्रावण मास ?

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 2, 2012 at 3:36pm

सप्त लोक के पार है बहना का वह धाम.

भीगी आँखों से करें, पुनि-पुनि उसे प्रणाम..

धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी आदरणीय अरुण निगम जी को पुनः मेरा प्रणाम .....सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2012 at 3:14pm

बहना है हृद में बसी, चुपचुप सी है दृष्टि
मन को मन से बालती, आँखों की यह वृष्टि

सादर आदरणीय अम्बरीषभाईजी.  आदरणीय अरुण भाई की इस उच्च भावदशा को पुनः सादर प्रणाम कि हम सजल-सप्रवाह हो चले.. .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 2, 2012 at 3:08pm

आदरणीय अरुण जी,
रक्षा बंधन पर बहना की स्मृतियों से सजी इस रचना के लिए हार्दिक नमन.
सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 2, 2012 at 2:57pm

//आकुल मन नम आँख से, बहना आती याद ।
उस घर है वो जा बसी, जहाँ न हर्ष-विषाद ॥

जबसे बहना जा बसी जहाँ बसे घनश्याम |
राखी बिना कलाइयाँ तबसे उसके नाम ||

मेरे मन की मान थी, मन की ईश सुनाम |
मन से मन को तारती, बहना याद तमाम ||//

चली गयी जग छोड़ कर, कहाँ करें फ़रियाद.

एक  हमारा  दर्द  है , आती  बहना  याद ..    सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 2, 2012 at 2:52pm

खो गयी जो बादलों में

मन वहीं अपना बसा है

गीत अति सुंदर तुम्हारा

दर्द ने इसको रचा है

आँख में आँसू भरे हैं

देख तेरी याद आयी

राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई......सादर

Comment by Albela Khatri on August 2, 2012 at 2:41pm

आदरणीय अरुण निगम जी
आज रक्षाबंधन  के उत्साहपूर्ण  वातावरण में भी आपके गीत ने भीतर तक द्रवित कर दिया


रेशमी धागों की अब भी
इस कलाई पर छुअन है
हो रहा अहसास कि
नजदीक ही मेरी बहन है
वह प्रतीक्षा कर रही है
हाथ में थामे मिठाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई........................

________--अत्यंत  पवित्र  और  मार्मिक गीत रचा आपने........सच !  कलाई सूनी हो, तो  बहनों की याद मन भेद देती है........

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