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प्रीत के उपहार

छंद रूपमाला (१४ +१० ) अंत गुरु-लघु ,समतुकांत
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झनक झन झांझर झनकती , छेड़ एक मल्हार .
खन खनन कंगन खनकते, सावनी मनुहार .
फहर फर फर आज आँचल , प्रीत का इज़हार .
बावरा मन थिरक चँचल , साजना अभिसार .
*****************************************************
धडकनें मदहोश पागल , नयन छलके प्यार .
बोल कुछ बोलें नहीं लब, मौन सब व्यवहार .
शान्ति, चिर-स्थायित्व , खुशियाँ, प्रीत के उपहार .
झूमता जब प्रेम अँगना ,बह चले रसधार .
*****************************************************

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 22, 2012 at 8:55pm

हार्दिक आभार प्रिय दीप्ति जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 22, 2012 at 8:55pm
आदरणीय अम्बरीश जी,
आप समस्त साहित्य समृद्ध गुरुजनों द्वारा रचना समीक्षा  व ज्ञान दीक्षा का सभी ज्ञानार्थियों को सदा इंतज़ार रहता है...

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 22, 2012 at 8:08pm

प्राची जी बहुत ही प्यारी छंद रूप माला है बहुत पसंद आई पहली पंक्ति ने ही मन मोह लिया 

Comment by deepti sharma on July 22, 2012 at 7:58pm

आदरणीया डॉ प्राची जी वाह

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 22, 2012 at 6:55pm

डॉ० प्राची जी, आपने मेरे सुझाव का मान रखा ...इस हेतु आपका हार्दिक आभार ! सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 22, 2012 at 6:42pm
आपको यह रचना पसंद आयी, इस हेतु आपका हार्दिक आभार अरुण शर्मा जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 22, 2012 at 6:36pm
 आदरणीय लक्ष्मी प्रसाद लाडिवाला जी,
इस रचना को सराहने हेतु आपका आभार.
राजस्थान की तीझ की तो बात ही निराली है....
नीम के बड़े बड़े पेड़ों पर लगे झूले, हाथों में मेहंदी की खुशबू, मिटटी की सौंधी सौंधी खुशबू, मोरों का नाच, घेवर, दाल-बाटी, सखियों का साथ, रंगबिरंगी पगड़ियों में भाई लोग....
पढाई के दौरान होस्टल में सालों तक मनाई गयी वही तीझ सच मानिए आज तक जहन में बसी है...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 22, 2012 at 6:30pm

आदरणीय अम्बरीश श्रीवास्तव जी

आपका बहुत बहुत आभार, आपने इस रूपमाला छंद पर किये गए प्रयास को सराहकर मेरे उत्साह को बढ़ाया है...
आपने सुधार  हेतु  जितने भी परिवर्तन बताए हैं, उनसे तो गेयता कई गुना बढ़ गयी इन पदों की... अब ये एक प्रवाह में बहुत सरस लग रहे हैं..
इस अनमोल मार्गदर्शन हेतु आपका हार्दिक आभार.
सादर.
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 22, 2012 at 5:12pm
डा. प्राची जी, आपकी रचना आज तीज के त्यौहार पर खास तौर पर 
राजस्थान में सावन में तीज के जयपुर मेले में गाँव गाँव से आई 
महलाओ और पुरुषों का त्रिपोलिया बाज़ार से राम निवास बाग तक 
झूमते, नाचते गाते झुंडों में बहुत ही मुक्कमल बैठती है | बहुत सुन्दर 
Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 22, 2012 at 2:42pm

डॉ० प्राची जी, मैं अति प्रसन्न हूँ कि आपने ‘रूपमाला’ छंद रचने का सफल प्रयास किया है.....साधुवाद......

फिर भी इनमें कुछ सुधार अपेक्षित है .....

सुधार हेतु सुझाव :

//झनक झन झाँझरी झनके , सावन की फुहार .

कँगन खन कलाई खनके , छेड़ इक मल्हार .

फहर फर फर उढ़े आँचल , प्रीत का इज़हार .

बावरा मन थिरके चँचल , प्रियतमः अभिसार .//

झनक-झन झांझर झनकती, छेड़ एक मल्हार.

खन खनन कंगन खनकते, सावनी मनुहार.    

फहर-फर-फर आज आँचल, प्रीत का इज़हार.

बावरा मन थिरक चँचल, साजना अभिसार..

(मल्हार का उच्चारण आमतौर पर मल्हा-र किया जाता है अतः मेरी दृष्टि में इसे ‘इक’  के बजाय ‘एक’ लिखना ही सही रहेगा)

 

//धड़कनें मदहोश पागल , नयन छलके प्यार .

बोल कुछ बोलें नहीं लब , मौन सब व्यवहार .

शान्ति मुस्काँ और स्थिरता , प्रीत के उपहार .

झूमता जब प्रेम अँगना , बह चले रसधार.//

धड़कनें मदहोश पागल , नयन छलके प्यार .

बोल कुछ बोलें नहीं लब , मौन सब व्यवहार..

शान्ति, चिर-स्थायित्व, खुशियाँ, प्रीत के उपहार..

झूमता जब प्रेम अँगना , बह चले रसधार..

सादर

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