For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिस प्रकार के भवन की कल्पना बादशाह ने की थी यह भवन उससे भी कहीं अधिक सुन्दर बना था, जिसकी भव्यता देखकर बादशाह की आँखें चौंधिया सी गईं थीं. चहुँ ओर भवन निर्माण करने वाले शिल्पकार की मुक्तकंठ से प्रशंसा हो रही थी. जिसे सुनकर शिल्पकार भी फूला नहीं समा रहा था. लेकिन तभी अचानक बादशाह ने शिल्पकार के दोनों हाथ काट देने का आदेश दे दिया ताकि शिल्पकार पुन: ऐसी शानदार इमारत का निर्माण न कर सके. सुबह होते ही शिल्पकार के दोनों हाथ काट दिए गए. लेकिन अपने कटे हाथ देख शिल्पकार जोर जोर से ठहाके मार कर हँसने लगा, उसके ठहाके रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. यह हरकत देख कर वहां उपस्थित भीड़ मानो सकते में आ गई. एक व्यक्ति ने आगे बढ़कर पूछा:
"दोनों हाथ गंवाकर भी हँस रहे हो, पागल हो गए हो क्या ?"
"पागल मैं नहीं तुम्हारा बादशाह हो गया है ?
"वो कैसे ?"
"वो मूर्ख शायद ये भूल गया कि शिल्प मेरे हाथों में नहीं, मेरी आत्मा में बसता है."

--------------------------------------------------------------------------------------

Views: 946

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Satyajit Roy on July 18, 2015 at 2:18pm
बहुत खूब सर जी, शत शत नमन आपको ....मृतप्राय हौसलो को भी यह ऊँची उडान दे दे .

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 7, 2012 at 2:15pm

दिल से धन्यवाद अग्रज प्रदीप सिंह कुशवाहा जी।

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 7, 2012 at 1:36pm

आदरणीय प्रभाकर जी, सादर अभिवादन 

सही कहा हाथ तो बहुतों के पास है. शिल्प आत्मा में बसती है. प्रेरणादायक कथा. 

बधाई. 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 12, 2012 at 4:49pm

स्वागत है  आदरणीय योगराज जी ,


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 4:13pm

आदरणीय अम्बरीश भाई जी, आपकी दृष्टि इस रचना पर पडी आपने पसंद किया और मुझ्र क्या चाहिए ? दिल से धन्यवाद आदरणीय.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 12, 2012 at 4:11pm

//"पागल मैं नहीं तुम्हारा बादशाह हो गया है ?
"वो मूर्ख शायद ये भूल गया कि शिल्प मेरे हाथों में नहीं, मेरी आत्मा में बसता है."//

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी , इस शानदार लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें !


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 4:10pm

लघु कथा पसंद करने के लिए दिल से शुक्रिया राजेश कुमारी जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 4:10pm

भाई कुमार गौरव जी, दिल से आभार.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 4:09pm

दिल से आभार संदीप द्विवेदी भाई.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 4:09pm

डॉ प्राची सिंह जी, आपको लघुकथा पसंद आई, जान कर बेहद ख़ुशी हुई. सादर धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service