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घन गरज बरस प्यासी धरती पुकारे (रूप घनाक्षरी)

घन गरज बरस प्यासी धरती पुकारे ;
कृषक भी ताक रहे कब से ही आसमान |

मेघा टर्र-टर्र कर थकने लगे हैं जैसे ;
अब सुन ले उनकी अच्छा नहीं ये गुमान |

तुझ पर ही निर्भर खेती हमारे देश की ;
बिन तेरे हो जाएगी रूखी-सूखी सुनसान |

दे देंगी तेरी फुहारें कई लोगों को जिंदगी ;
झूम के सब करेंगे खूब तेरा गुणगान ||

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Comment

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Comment by Albela Khatri on June 25, 2012 at 12:16pm

waah !

bahut khoob !

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 24, 2012 at 11:18pm
आदरणीय अरुण निगम सर, आपका हार्दिक आभार। स्नेह बनाए रखिएगा।
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 24, 2012 at 11:16pm
आदरणीय राज तोमर जी, उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on June 24, 2012 at 10:18pm

घनाक्षरी में की गई प्रार्थना पूर्ण  हो. सुंदर छन्द.

Comment by Raj Tomar on June 24, 2012 at 9:36pm

बहुत ही शानदार कविता, कुमार साब. बधाई हो. :)

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 24, 2012 at 12:42pm
आदरणीया रेखा जी, आपने रचना को अपना समय दिया, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 24, 2012 at 12:40pm
आदरणीया राजेश जी, आपका हार्दिक आभार।
Comment by Rekha Joshi on June 24, 2012 at 11:33am

गौरव जी ,

तुझ पर ही निर्भर खेती हमारे देश की ;
बिन तेरे हो जाएगी रूखी-सूखी सुनसान |,बढ़िया प्रस्तुति

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 24, 2012 at 11:17am

सुन्दर प्रस्तुति 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 24, 2012 at 10:48am
आदरणीय लक्ष्मण जी, हार्दिक आभार आपका। आज भी हमारे देश की खेती बहुत हद तक मौसमी बारिश की मोहताज है। ये नहीँ होना चाहिए। इसका प्रतिकूल प्रभाव पैदावार पर पड़ता है।

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