For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम चले क्यों गये ?

तुम चले क्यों गये
मुझको रस्ता दिखा के, मेरी मन्ज़िल बता के
तुम चले क्यों गये

तुमने जीने का अन्दाज़ मुझको दिया
ज़िन्दगी का नया साज़ मुझको दिया
मैं तो मायूस ही हो गया था, मगर
इक भरोसा-ए-परवाज़ मुझको दिया.
फिर कहो तो भला
मेरी क्या थी ख़ता
मेरे दिल में समा के, मुझे अपना बना के
तुम चले क्यों गये

साथ तुम थे तो इक हौसला था जवाँ
जोश रग-रग में लेता था अंगड़ाइयाँ
मन उमंगों से लबरेज़ था उन दिनों
मिट चुका था मेरे ग़म का नामो-निशाँ.
फिर ये कैसा सितम
क्यों हुए बेरहम
दर्द दिल में उठा के, मुझे ऐसे रुला के
तुम चले क्यों गये
तुम चले क्यों गये
तुम चले क्यों गये?


शब्दार्थ:
परवाज़ = उड़ान
रग-रग = नस-नस
लबरेज़ = भरा हुआ

Views: 375

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by moin shamsi on September 28, 2010 at 3:55pm
thanx a lot to all of you.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 28, 2010 at 3:50pm
मैं तो मायूस ही हो गया था, मगर
इक भरोसा-ए-परवाज़ मुझको दिया.
फिर कहो तो भला
मेरी क्या थी ख़ता
मेरे दिल में समा के, मुझे अपना बना के
तुम चले क्यों गये ??
वाह वाह क्या कहूँ इस रचना पर सिर्फ यही कहूँगा कि "आप तो कमाल कर गये मियाँ" बहुत खूब, बधाई कुबूल करे जनाब |
Comment by आशीष यादव on September 28, 2010 at 5:52am
Wah moin sir, kamal ka git likha hai.
Comment by Hilal Badayuni on September 27, 2010 at 8:52pm
bahut khoob moin miyan achche khyaalat ki bandish ki hai

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service