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ग़म ज़िंदगी में देख के रोया नहीं कभी

ग़म ज़िंदगी में देख के रोया नहीं कभी।

अश्क़ों से अपने गाल भिगोया नही कभी॥

 

हर सिम्त है धुआं यहाँ हर सिम्त आग है,

इस खौफ़ से ही चैन से सोया नही कभी॥

 

दिल में जिगर में था वही साँसों में वही था ,

आँखों के सामने से वो खोया नही कभी॥

 

ख़ुशबू बदन की उसके ना उड़ जाये इसलिए,

बिस्तर की अपने चादरें धोया नही कभी॥

 

लेकर बहुत से दर्द वो चुपचाप मर गया,

कांटे किसी की राह में बोया नही कभी॥

 

मज़बूरियाँ थी ज़िंदगी भर साथ में मगर,

रिश्तों को बोझ जान के ढोया नही कभी॥

 

यह सोचकर कि फूल के सीने में भी है दिल,

“सूरज” सुई से हार पिरोया नही कभी॥

 

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

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Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 30, 2012 at 3:38pm

आदरणीय बाली जी, सादर 

बहुत खूब गजल. बधाई. 
Comment by Rekha Joshi on May 30, 2012 at 12:42pm

suraj ji ,

लेकर बहुत से दर्द वो चुपचाप मर गया,

कांटे किसी की राह मे बोया नही कभी॥,ati sundr panktiyaan ,badhai


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 30, 2012 at 9:24am

यह सोचकर कि फूल के सीने में भी है दिल,

“सूरज” सुई से हार पिरोया नही कभी॥

bahut sundar gazal doctor sahab. Is sher ke liye hardik daad kubool karen.

Comment by आशीष यादव on May 30, 2012 at 6:52am

हर एक शेर दिल छूता है। खूबसूरत गजल कहे हैं।
लेकर बहुत से दर्द वो चुपचाप मर गया,
कांटे किसी की राह मे बोया नही कभी॥
मज़बूरियाँ थी ज़िंदगी भर साथ में मगर,
रिश्तों को बोझ जान के ढोया नही कभी॥
आह भी और वाह भी

Comment by Bishwajit yadav on May 29, 2012 at 10:17pm
ख़ुशबू बदन की उसके ना उड़ जाये इसलिए,
बिस्तर की अपने चादरें धोया नही कभी॥


वाह! क्या बात है टच माई दिल सुरज जी
Comment by Nilansh on May 29, 2012 at 8:19pm
लेकर बहुत से दर्द वो चुपचाप मर गया,

कांटे किसी की राह मे बोया नही कभी॥

v nice surya ji
very good ghazal

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 29, 2012 at 5:18pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल सूर्या जी सभी शेर बहुत अच्छे है ये तो बहुत टचिंग शेर हैं 

ख़ुशबू बदन की उसके ना उड़ जाये इसलिए,

बिस्तर की अपने चादरें धोया नही कभी॥

 

यह सोचकर कि फूल के सीने में भी है दिल,

“सूरज” सुई से हार पिरोया नही कभी॥

 


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