For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़म ज़िंदगी में देख के रोया नहीं कभी

ग़म ज़िंदगी में देख के रोया नहीं कभी।

अश्क़ों से अपने गाल भिगोया नही कभी॥

 

हर सिम्त है धुआं यहाँ हर सिम्त आग है,

इस खौफ़ से ही चैन से सोया नही कभी॥

 

दिल में जिगर में था वही साँसों में वही था ,

आँखों के सामने से वो खोया नही कभी॥

 

ख़ुशबू बदन की उसके ना उड़ जाये इसलिए,

बिस्तर की अपने चादरें धोया नही कभी॥

 

लेकर बहुत से दर्द वो चुपचाप मर गया,

कांटे किसी की राह में बोया नही कभी॥

 

मज़बूरियाँ थी ज़िंदगी भर साथ में मगर,

रिश्तों को बोझ जान के ढोया नही कभी॥

 

यह सोचकर कि फूल के सीने में भी है दिल,

“सूरज” सुई से हार पिरोया नही कभी॥

 

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

Views: 708

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 30, 2012 at 3:38pm

आदरणीय बाली जी, सादर 

बहुत खूब गजल. बधाई. 
Comment by Rekha Joshi on May 30, 2012 at 12:42pm

suraj ji ,

लेकर बहुत से दर्द वो चुपचाप मर गया,

कांटे किसी की राह मे बोया नही कभी॥,ati sundr panktiyaan ,badhai


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 30, 2012 at 9:24am

यह सोचकर कि फूल के सीने में भी है दिल,

“सूरज” सुई से हार पिरोया नही कभी॥

bahut sundar gazal doctor sahab. Is sher ke liye hardik daad kubool karen.

Comment by आशीष यादव on May 30, 2012 at 6:52am

हर एक शेर दिल छूता है। खूबसूरत गजल कहे हैं।
लेकर बहुत से दर्द वो चुपचाप मर गया,
कांटे किसी की राह मे बोया नही कभी॥
मज़बूरियाँ थी ज़िंदगी भर साथ में मगर,
रिश्तों को बोझ जान के ढोया नही कभी॥
आह भी और वाह भी

Comment by Bishwajit yadav on May 29, 2012 at 10:17pm
ख़ुशबू बदन की उसके ना उड़ जाये इसलिए,
बिस्तर की अपने चादरें धोया नही कभी॥


वाह! क्या बात है टच माई दिल सुरज जी
Comment by Nilansh on May 29, 2012 at 8:19pm
लेकर बहुत से दर्द वो चुपचाप मर गया,

कांटे किसी की राह मे बोया नही कभी॥

v nice surya ji
very good ghazal

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 29, 2012 at 5:18pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल सूर्या जी सभी शेर बहुत अच्छे है ये तो बहुत टचिंग शेर हैं 

ख़ुशबू बदन की उसके ना उड़ जाये इसलिए,

बिस्तर की अपने चादरें धोया नही कभी॥

 

यह सोचकर कि फूल के सीने में भी है दिल,

“सूरज” सुई से हार पिरोया नही कभी॥

 


कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service