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कुण्डलिया (एक प्रयास)
 
 
आँखों में सपने सजा, होंठों पर मुस्कान
साजन औ सजनी चले, प्रेम डगर अंजान
प्रेम डगर अंजान, संग हों जीवन साथी
रौशन हर इक राह, बने जो दीपक बाती    
नैया होती पार, भले हो तूफाँ लाखों
निष्ठा और कर्तव्य, बसे हों जिनकी आँखों....

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 24, 2012 at 11:46am

आदरणीय गणेश बागी जी, कुण्डलिया पर मेरे प्रयास को सरह्कर प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार.. कृपया आपके द्वारा इंगित अंतिम भाग (आँखों..) में यथोचित संशोधन कर के मुझे भी उदाहरण द्वारा समझाने का कष्ट करें कि अटकन कैसे दूर की जाए

आभार. सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 24, 2012 at 11:42am

आदरणीय अशोक कुमार जी, आदरणीय अविनाश बागडे जी, कुण्डलिया पर मेरे प्रथम प्रयास को सराहने के लिए हार्दिक आभार


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 22, 2012 at 12:53pm

डॉ साहिबा अच्छी रचना , उचित प्रयास किन्तु अंतिम पक्ति अटक रही है , (आँखों वाला पार्ट) 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2012 at 8:46am

प्राची जी
सादर, बहुत सुन्दर छंद काव्य सार्थक प्रयास. बधाई.

Comment by AVINASH S BAGDE on May 18, 2012 at 9:08pm

प्रेम डगर अंजान, संग हों जीवन साथी
रौशन हर इक राह, बने जो दीपक बाती    sunder kundaliya Dr Prachi ji


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 18, 2012 at 9:34am
हार्दिक आभार अजय कुमार बोहाट जी .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 18, 2012 at 9:33am

हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपके द्वारा इस कुंडली छंद का अनुमोदन मेरे लिए बहुमूल्य है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 18, 2012 at 9:31am
हार्दिक आभार भावेश राजपाल जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 18, 2012 at 9:31am
हार्दिक आभार आशीष यादव जी
Comment by AjAy Kumar Bohat on May 17, 2012 at 9:08pm

नैया होती पार, भले हो तूफाँ लाखों
निष्ठा और कर्तव्य, बसे हों जिनकी आँखों....

bahut sundar... 

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