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              चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

जहां सुन्दर परियां रहती हों 

जहां निर्मल नदियाँ बहती हों 

जहां दिलों कि खिड़की खुली-खुली 

जहां सुगंध पवन में घुली- घुली  

जहां खुशियाँ  हंसती हो हरदम 

                      चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

जहां दरख़्त खड़े हों बड़े-बड़े 

हर शाख पे झूले पड़े -पड़े 

जहां संस्कृतियों का वास हो 

जहां कुटिलता का ह्रास हो 

कोई ऐसा तरु उगाये हम 

                       चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

जहां भ्रष्टाचार का नाम ना हो 

जहां बेईमानी का काम ना हो 

जहां तन- मन के कपडे उजलें हों 

जहां स्वस्थ अशआर की ग़ज़लें हों

कोई निर्धन हों ना कोई गम 

                        चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

जहां भाईचारे की  खाद डले

जहां माटी से सोना निकले 

जहां श्रम का फल दिखाई दे 

जहां कर्म संगीत सुनाई दे 

आ ऐसी फसल उगाये हम 

                          चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

जहां अपराधो का डंक ना हों 

जहां राजा हों कोई रंक ना हों  

जहां पुष्प  खिले कांटें ना खिले 

जहां मीत मिले दुश्मन ना मिले 

ऐसा गुलशन महकाएं  हम 

                            चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

              **********

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 24, 2012 at 8:28am

बहुत बहुत हार्दिक आभार गणेश बागी जी मेरी लेखनी  को उत्साहित करने पर 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 23, 2012 at 7:40pm

वाह वाह, बहुत ही रुचिकर रचना, सरल प्रवाह और उम्दा भावयुक्त अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें आदरणीया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 19, 2012 at 3:11pm

हार्दिक आभार सरिता जी आपकी प्यारी सकारात्मक सोच से ख़ुशी मिली 

Comment by Sarita Sinha on May 19, 2012 at 3:04pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी, नमस्कार, 

बहुत ही सुन्दर मनमोहक कल्पना..आज के युग के लिए अत्यंत आवश्यक.....बधाई...

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2012 at 9:18pm

अविनाश जी बहुत बहुत आभारी हूँ बहुत ख़ुशी हुई आपकी प्रतिक्रिया पाकर 

Comment by AVINASH S BAGDE on May 18, 2012 at 9:13pm

जहां मीत मिले दुश्मन ना मिले 

ऐसा गुलशन महकाएं  हम 

                            चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम shabdo ka aashawan need sajaya hai Rajesh kumari mam aapane


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2012 at 9:05pm

अशोक कुमार रकतेला जी बहुत बहुत हार्दिक आभार 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 18, 2012 at 8:11pm

राजेश जी
         सादर,
                   जहां अपराधो का डंक ना हों
           जहां राजा हों कोई रंक ना हों 
           जहां पुष्प  खिले कांटें ना खिले
           जहां मीत मिले दुश्मन ना मिले
           ऐसा गुलशन महकाएं  हम
                            चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम
बहुत ही कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति. आपकी भावनाओं को बल मिले. शुभकामना.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 17, 2012 at 9:32pm

अजय कुमार बोहत जी बहुत सुखद है आपकी प्रतिक्रिया हार्दिक आभार 

Comment by AjAy Kumar Bohat on May 17, 2012 at 9:16pm

जहां अपराधो का डंक ना हों

जहां राजा हों कोई रंक ना हों

जहां पुष्प खिले कांटें ना खिले

जहां मीत मिले दुश्मन ना मिले

ऐसा गुलशन महकाएं हम

चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम

baar baar padhne ko ji chahta hai, bahut bahut badhai Rajesh ji....... 

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