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याद तुम्हारी आते ही मन व्याकुल हो जाता है,
छूट गया वो साथ जो कभी नहीं फिर आता है.
 
कितना था आनंद कितना था फिर प्यार वहां,
कितने थे कोमल सपने कितने थे अरमान वहां.
बिजली सी चंचलता थे तूफानो सा उन्माद वहां,
रूठ गया किसी बात पे मीत बहुत याद आता है.
                          याद तुम्हारी आते ही मन .......................
छोटे छोटे गुड्डे गुडिया, छोटी अपनी दुनिया थी,
छोटे छोटे स्वप्न गढ़े थे, छोटी उनकी कड़ियाँ थी,
छोटे छोटे खेल खिलौने, छोटी अपनी बगिया थी,
उड़नपरियों वाला किस्सा अब भी मन को भाता है.
                            याद तुम्हारी आते ही मन .......................
मेरे मन के इक कोने में सदा तुम्हारा वास रहा,
भूल  सका ना कभी तुम्हे सदा तुम्हारा भास रहा,
दूर गया मै निकल फिरभी ह्रदय तुम्हारे पास रहा,
फूलों पे तितली का आना अब भी मुझको भाता है.
                              याद तुम्हारी आते ही मन .......................
तेरे जाते ही यौवन आया आयी जिम्मेदारी भी,
रोक सका ना तेरा जाना उफ़ क्या मजबूरी थी,
धरती अम्बर में जीतनी उतनी ही अब दूरी थी,
जीवन में बचपन ही क्यूँ सबसे पहले आता है,
                                याद तुम्हारी आते ही मन .......................

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Comment

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Comment by Sarita Sinha on May 8, 2012 at 8:08pm

आदरणीय अशोक जी, नमस्कार,बचपन के दिन भी क्या दिन थे, उड़ते फिरते तितली बन के...बहुत भावुक कर देने वाली रचना..विशेषतया.....

तेरे जाते ही यौवन आया आयी जिम्मेदारी भी,
रोक सका ना तेरा जाना उफ़ क्या मजबूरी थी,
धरती अम्बर में जीतनी उतनी ही अब दूरी थी,
बहुत  सुन्दर......
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 8, 2012 at 12:36pm
आदरणीय अशोक जी, सादर अभिवादन.
हर पल आप से सिखने को मिलता है.
जीवन में बचपन ही क्यूँ सबसे पहले आता है,..क्या बात है. बधाई.
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 8, 2012 at 10:44am

कितना था आनंद कितना था फिर प्यार वहां,

कितने थे कोमल सपने कितने थे अरमान वहां.
बिजली सी चंचलता थे तूफानो सा उन्माद वहां,
रूठ गया किसी बात पे मीत बहुत याद आता है.
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ रक्ताले सर. बधाई.
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2012 at 6:57am

आदरणीय भ्रमर जी, छोटूसिंगजी, भावेश जी काव्य रचना पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार. धन्यवाद.                                   

Comment by Bhawesh Rajpal on May 8, 2012 at 5:53am
तेरे जाते ही यौवन आया आयी जिम्मेदारी भी,
रोक सका ना तेरा जाना उफ़ क्या मजबूरी थी,
धरती अम्बर में जीतनी उतनी ही अब दूरी थी,
जीवन में बचपन ही क्यूँ सबसे पहले आता है,
                                याद तुम्हारी आते ही मन ...............
उत्तम वर्णन  ! निश्चिन्त , निश्छल , बचपन कौन भूल पाता है  ! सांसारिक कटु-सत्य  हमारे व्यक्तित्व को वह रूप दे देते हैं , जो आज हम हैं !

खुबसूरत  वर्णन के लिए बधाई स्वीकार करें  ! 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 7, 2012 at 11:23pm

मेरे मन के इक कोने में सदा तुम्हारा वास रहा,

भूल  सका ना कभी तुम्हे सदा तुम्हारा भास रहा,
दूर गया मै निकल फिरभी ह्रदय तुम्हारे पास रहा,
फूलों पे तितली का आना अब भी मुझको भाता है.
                              याद तुम्हारी आते ही मन .......................
तेरे जाते ही यौवन आया आयी जिम्मेदारी भी,
रोक सका ना तेरा जाना उफ़ क्या मजबूरी थी,
प्रिय अशोक   जी सुन्दर ...उफ़ कैसी मजबूरी थी ...इस जिन्दगी में ऐसा पड़ाव भी आ ही जाता है --भ्रमर ५ 

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