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आप में ही है यह सलीका,
जो कपडे भी- 
सहेजकर रखते हो |
एक थे मंत्री-
दिन में चार बार बदलते थे 
पत्रकार की नजर में आगये 
उनके दिन फिरगए-
मंत्री पद से चले गए |
यह आदमी की अमीरी नहीं 
बल्कि यह तो कमजोर है, 
उसके दिल का आशियाना, 
जहाँ किसी को 
मिलती ठंडी छाँव नहीं 
उसमे धैर्य नहीं,
जो जीवन-साथी को भी 
ऐसे बदलते  है-
जैसे बदलता हैकोई कपड़ा |
नहीं देखा उसने
भारतीय नारी का 
साथ रहने का 
सात जनम का सपना | 
फिर कैसे मिलता-
उसको कोई अपना |

-लक्ष्मण प्रसाद  लडीवाला,जयपुर  

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 16, 2012 at 10:27am

भाई लक्षमण जी, इंगित को क्या खूब अंदाज़ दिया है आपने. बधाई

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 16, 2012 at 9:33am
धन्यवाद एस के शुक्ला भ्रमर जी, हमारे भारत में जहा नारी 
का सम्मान वेदों में "पत्नी ही घर है" अर्थात स्त्री के बिना घर
गर नहीं, के रूप में था, वाही आज तिरस्कार के रूप में पीड़ित 
है, के प्रति सजग होकर फिर वही सम्मान दिलाने हेतु साहित्यकार 
चिन्तक, कवि मनीषियों का दायित्व अधिक बढ़ गया है, उसी 
परिप्प्रेक्ष में  मेरी कलम से " माँ का महत्त्व, "बेटियाँ", चहरे की रौनिक,
जैसी रचनाए लिख पाया हूँ, जो आप जैसे विद्वत लोगो के समक्ष रखने 
का प्रयास है | आपके उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद | 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 15, 2012 at 11:19pm

यह आदमी की अमीरी नहीं 

बल्कि यह तो कमजोर है, 
उसके दिल का आशियाना, 
जहाँ किसी को 
मिलती ठंडी छाँव नहीं 
उसमे धैर्य नहीं,
जो जीवन-साथी को भी 
ऐसे बदलते  है-
जैसे बदलता हैकोई कपड़ा |

 आदरणीय लक्ष्मण जी ..फिर कैसे मिलता कोई उसको अपना ..भारतीय नारी के पवित्र प्रेम की गाथा जहां एक जन्म नहीं सात जन्मों का साथ ....आज लोग भटक जा रहे हैं खेल खिलौने हो गए रिश्ते ...जय श्री राधे 

भ्रमर ५ 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 15, 2012 at 9:56pm
हार्दिक धन्यवाद श्री पी के सिंह कुशवाहजी 
 - लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 14, 2012 at 10:57pm

sahi baat kese koi milta apna. badhai mahoday ji, sadar abhivadan ke sath.

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