For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तनहा कट गया जिन्दगी का सफ़र कई साल का

चंद अल्फाज कह भी डालिए अजी मेरे हाल पर

मौसम है बादलों की बरसात हो ही जाएगी

हंस पड़ी धूप तभी इस ख्याल पर

 

फिर कहाँ मिलेंगे मरने के बाद हम

सोचते ही रहे सब इस सवाल पर

खुशबुओं की राह से एक दिन गुजर गया

कहाँ से आ गई ये राह दीवाल पर

 

शायद इन रस्तों से होकर ख्वाबों में गुजरे

दिखे हैं मुझको सहरा चांद हर जर्रे पर

आसमान थर्राता था जिन आवाजों की जुम्बिश पर

बहरा चांद भी चुप है मेरी आवाजों पर

 

तेरा आँचल हवाओं में ऐसे लहराता है

दिखे है लहरा चांद नदी के दर्पण पर

और भी छलक जाती हैं निगाह मिलाकर

हश्र तो ये है तुमसे मुलाकात पर

 

जिसे देखकर बढ़ी जाती है प्यास हर पल

हाल तो ये है लगी झड़ी बरसात पर

जरा गौर फरमाईए 'राजीव' की इस बात पर

उस चांदनी रात का जिक्र क्यों न हो इस ख्याल पर

Views: 482

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 28, 2012 at 9:31pm

शायद इन रस्तों से होकर ख्वाबों में गुजरे

दिखे हैं मुझको सहरा चांद हर जर्रे पर

आसमान थर्राता था जिन आवाजों की जुम्बिश पर

बहरा चांद भी चुप है मेरी आवाजों पर

 

तेरा आँचल हवाओं में ऐसे लहराता है

दिखे है लहरा चांद नदी के दर्पण पर

और भी छलक जाती हैं निगाह मिलाकर

हश्र तो ये है तुमसे मुलाकात पर

प्रिय राजीव जी ...सुन्दर गजल ...प्रिय प्रियतमा के नाजुक बंधन ....कौन आये बीच में चाँद के .....भ्रमर ५ 

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on April 12, 2012 at 3:41pm

आदरणीय प्रदीप जी .धन्यवाद ! सराहना के लिए आभार.

दिल में उतर गई तहरीर आपकी

नजर  उठा  के  देखा  थी  वो  तस्वीर  आपकी.

बहुत खूब.आपकी प्रतिक्रिया ने आह्लादित कर दिया.

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on April 12, 2012 at 3:36pm

धन्यवाद ! आदरणीय जवाहर जी.सराहना के लिए आभार.

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on April 12, 2012 at 3:35pm

धन्यवाद ! सरिता जी.सराहना के लिए आभार.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 10, 2012 at 12:43pm

शायद इन रस्तों से होकर ख्वाबों में गुजरे

दिखे हैं मुझको सहरा चांद हर जर्रे पर

आसमान थर्राता था जिन आवाजों की जुम्बिश पर

बहरा चांद भी चुप है मेरी आवाजों पर

aavaj do kahan ho tum dunia meri javan hai 

aadarniya rajiv sir ji, saadar abhivadan

dil main utar gayi tahrir aapki

najar utha ke dekha thi vo tasvir aapki. badhai.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 9, 2012 at 10:26pm

तेरा आँचल हवाओं में ऐसे लहराता है

दिखे है लहरा चांद नदी के दर्पण पर

और भी छलक जाती हैं निगाह मिलाकर

हश्र तो ये है तुमसे मुलाकात पर

बहुत ही सुन्दर! झा  जी  बधाई !

Comment by Sarita Sinha on April 9, 2012 at 2:21pm

rajiv ji namaskar, 

bahut hi khubsurat is ghazal ki badhai swikar kijiye....

insan kitna bhi mazbut dikhe par andar koi n koi nazuk dhaga to hota hi hai...

khubsurat nazuk ehsas...

badhai...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
5 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
40 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
1 hour ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service