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आज वह (मानव )
पंचभूत में विलीन हो गया
कुछ भी तो नहीं ले जा सका
सबकुछ
जहाँ का तहां विद्यमान हैं
जब जीवन था
तब उसे फुर्सत था कहाँ ?
न संतुष्टि थी
न खुशिया
नित नए खोज में उलझे
वह प्राणी
भाग रहा था
परन्तु आज सबकुछ
ख़त्म हो गया
खाली हाथ आया था
खाली हाथ ही चला गया l

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Comment

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Comment by Rita Singh 'Sarjana" on April 7, 2012 at 5:57pm

adaraniy bagi sir, namaskar , har insaan ko is saty se gujarna padega yah jante huye  bhi insaan apne aham me chur hokar is saty ko bhula baithte hain ...........rachana pasand karne ke liye aapka baht-bahut abhaar

Comment by Rita Singh 'Sarjana" on April 7, 2012 at 5:53pm

sailendra ji , kavita pasand karne ke liye tatha sukhad pratikriya hetu abhaar

Comment by Rita Singh 'Sarjana" on April 7, 2012 at 5:52pm

bhramar ji ,sakaratmak pratikriya hetu abhaar

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 7, 2012 at 1:49pm

सचमुच इंसान ख़ाली हाथ आया है और ख़ाली हाथ ही उसे जाना है| सहज शब्दों में संसार के सबसे बड़े सत्य को प्रस्तुत करने पर हार्दिक बधाई स्वीकारें रीता जी!

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on April 7, 2012 at 10:53am

न संतुष्टि थी
न खुशिया
नित नए खोज में उलझे
वह प्राणी
भाग रहा था
रचना पर बधाई स्वीकार करें...आदरणीय रीता जी


Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 7, 2012 at 7:41am

आदरणीय रीता जी, सादर , बहुत सुंदर तरीके से जीवन की सच्चाई को रचना के माध्यम से बताया है.  तब उसे फुर्सत था कहाँ ? के स्थान पर क्या ये ठीक नहीं है  तब उसे फुर्सत थी  कहाँ ? बधाई.

कृपया इसे कॉपी-पेस्ट न माने बल्कि मेरे मन की बात भी यही है! आभार!
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 6, 2012 at 11:50pm

आदरणीय रीता जी, सादर , बहुत सुंदर तरीके से जीवन की सच्चाई को रचना के माध्यम से बताया है.  तब उसे फुर्सत था कहाँ ? के स्थान पर क्या ये ठीक नहीं है  तब उसे फुर्सत थी  कहाँ ? बधाई.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 6, 2012 at 10:44pm

यथार्थ के आँगन में पनपी इस रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीया रीता जी, सिर्फ और सिर्फ यही सत्य है बाकी सब भुलावा |

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 10:23pm

जीवन के सत्य को बताती रचना पर बधाई स्वीकार करें

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 6, 2012 at 10:14pm

नित नए खोज में उलझे
वह प्राणी
भाग रहा था
परन्तु आज सबकुछ
ख़त्म हो गया
खाली हाथ आया था
खाली हाथ ही चला गया l..

सर्जना जी ..सुन्दर ..जीवन का सत्य दिखाती रचना 

भ्रमर ५ 


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