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साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ,,,,,,,

साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ,,,,,,,

---------------------------------

आँचल हया का सर सॆ सरकनॆ नहीं दिया ॥

चॆहरॆ पॆ दिल का ग़म भी झलकनॆ नहीं दिया ॥

 

तॆबर अना कॆ, उनकॆ, कभी ख़म नहीं हुयॆ,

मिरॆ मिज़ाज़ नॆ मुझकॊ भी झुकनॆ नहीं दिया ॥

 

कुछ तर्कॆ-तआल्लुकात की दुश्वारियां तॊ थीं,

कुछ गर्दिशॊं नॆं भी मुझकॊ सम्हलनॆ नहीं दिया ॥

 

आज समंदर सा हॊता यकीनन रुतबा मॆरा,

दायरॊं नॆ कभी भी मुझकॊ पसरनॆ नहीं दिया ॥

 

मॆरॆ सफ़ीनॆ का मॆरा अपना नाखुदा था वॊ,

साहिल पॆ जिसनॆ मुझकॊ उतरनॆ नहीं दिया ॥

 

कॊशिशॆं तॊ बॆहिसाब की अपनॊं नॆ मगर,

गैरॊं की दुआवॊं नॆं मुझकॊ मरनॆ नहीं दिया ॥

 

बॆखबर है वॊ  ज़िन्दा हूं मैं जिसकॆ वास्तॆ,

उसकी खामॊशी नॆ इज़हार करनॆ नहीं दिया ॥

 

उसकॆ दामन पॆ तहरीर लिखता तॊ कैसॆ,

अश्कॊं की मानिंद मुझकॊ गिरनॆ नहीं दिया ॥

 

छॊड़ दॆता दर,गली,शहर,महफ़िल मगर,

उसकॆ एक वादॆ नॆ मुझकॊ मुकरनॆ नहीं दिया ॥

 

रॆत पर खड़ा था मॆरी मॊहब्बत का मकां,

बुनियाद  पॆ पत्थर तॊ उसनॆ धरनॆ नहीं दिया ॥

 

बड़ा कठिन है ज़मानॆ सॆ लड़ना "राज",

बुलंद हौसलॊं नॆ मुझकॊ बिखरनॆ नहीं दिया ॥

 

       कवि-राज बुन्दॆली

      ११/०३/२०१२

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 12, 2012 at 6:37pm

आनंद प्रवीण जी,,,,,,,,,बहुत-बहुत आभारी हूं आपका,,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 12, 2012 at 1:05pm

मैं ओ.बी.ओ. परिवार का तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हूं,,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 12, 2012 at 12:13pm

बहुत-बहुत आभारी हूं बृजभूषण जी,,,,,आपकॊ,,,,,,,,,,,नमन

Comment by Brij bhushan choubey on March 12, 2012 at 11:55am

आज समंदर सा हॊता यकीनन रुतबा मॆरा,

दायरॊं नॆ कभी भी मुझकॊ पसरनॆ नहीं दिया ॥

क्या  गंभीर बात कही है राज बुन्देली साहब बहुत खूब लाजवाब गजल |

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 12, 2012 at 11:40am

आप सभी को राज बुन्देली का प्रणाम,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 11, 2012 at 10:54pm

प्रदीप जी,,,,,,तहे-दिल से शुक्रिया आपका इस नाचीज को आपकी दाद मिली,

मैं धन्य हो गया एवं मेरा प्रयास सार्थक लगा मुझे,,,,,,,,,आदरणीय को प्रणाम,,,,,,,,,,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 11, 2012 at 9:02pm

संपूर्ण ग़ज़ल लाजवाब. बधाई. 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 11, 2012 at 4:31pm

अरुण जी ,,,,,तहे-दिल से शुक्रिया आपका इस नाचीज को दाद मिली आपकी मैं धन्य हो गया एवं मेरा प्रयास सार्थक लगा मुझे,,,,,,,,,

Comment by Abhinav Arun on March 11, 2012 at 3:42pm

कवी जी हर शेर आपके बुलंद हौसले का परिचायक है | आपके इस जज्बे को सलाम है -

बड़ा कठिन है ज़मानॆ सॆ लड़ना "राज",

बुलंद हौसलॊं नॆ मुझकॊ बिखरनॆ नहीं दिया ॥

बहुत बहुत बधाई इस शानदार रचना के लिए  !!

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on March 11, 2012 at 3:12pm

राजॆश कुमारी जी ,,,,,,

नारी-शक्ति को राज बुन्देली का प्रणाम,,,,,,

एवं,,,,,,,,,, हौसला आफ़जाई के वास्ते बहुत-बहुत धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,,

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