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देश की खातिर जान देते हैं हम हिन्दुस्तानी ,

कल की बाते हुई पुरानी ये तो दुनिया मानी ,
देश की खातिर जान देते हैं हम हिन्दुस्तानी ,
आलग थलग हम बटे हुए थे छोटे छोटे राजो में ,
दम थी अपनी अपनी अलग अलग आवाजो में ,
मगर न थी एकता जो सब हमपे की मनमानी ,
देश की खातिर जान देते हैं हम हिन्दुस्तानी ,

समझ में आई बीत चूका आये मुंगल और अंग्रेज ,
त्राहिमाम हम कर रहे थे भूलने लगे मतभेद ,
अलग अलग जो हम बटे थे आये एक धारा में ,
पूरा हिदुस्तान हमारा बुलंदी आई इस नारा में ,
मर मिटने पर तैयार हुई एक टोली मस्तानी ,
देश की खातिर जान देते हैं हम हिन्दुस्तानी ,

यारो इसको मत भूलो फिर वही ना काम करो ,
ये जो हमे मिली आजादी बीरो को सलाम करो ,
हर तरफ से लड़ने वाले ओ सपूत हिन्दुस्तानी ,
जिन्होंने निछावर की अपनी अमूल्य जवानी ,
उन बीरो की बात अब मानो मत करो सैतानी ,
देश की खातिर जान देते हैं हम हिन्दुस्तानी ,

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Comment by Ramakant Puri on September 15, 2010 at 3:44pm
bahut badhia rachna
Comment by Rash Bihari Ravi on September 15, 2010 at 2:14pm
ok sir
Comment by Pankaj Trivedi on September 15, 2010 at 9:28am
श्री रविकुमार जी,
अब तो देश के प्रति ही जज्बां कहाँ दीखता है ! मानो यह इतिहास ही बन गया और इसे में राष्ट्रभाषा के प्रति सजगता ...? गुजरात की स्कूलों में हिन्दी को गौण विषय बनाया गया है, अब कौन पढेगा?

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2010 at 8:58pm
अच्छी रचना है गुरु जी, वर्तनी सम्बंधित त्रुटिया थोक में हैं जो रचना को कमतर कर रहे है , कृपया सुधारना चाहेंगे , धन्यवाद,
Comment by आशीष यादव on September 14, 2010 at 7:59pm
Desh ki ekta ko taakati bahut sundar geet hai.

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