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दस फागुनी दोहे -

दस फागुनी दोहे -

मन में संशय न रहे खुले खुले हों बंध ,

नेह छोह के पुष्प से निकले मादक गंध |

 

हुलस उलस इतरा रहे गोरी तेरे अंग ,

मेरे मन बजने लगे ढोल मजीरा चंग |

 

गोरी फागुन रच रहा ये कैसा षडयन्त्र ,

तू कानो में फूंकती आज मिलन के मन्त्र |

 

रंग लगाने के लिए तू बैठी थी ओट ,

मेरा मन सकुचा गया था अंतर में खोट |

 

होली होला होलिका सारे हैं उन्मुक्त ,

जिसका मुंह काला हुआ वही हो गया भुक्त |

 

खेत बगीचे देखिये फैले कितने रंग ,

फागुन होली खेलता आज प्रकृति के संग |

 

बैरी फागुन ले उड़ा बड़े बड़ों के होश ,

भांग ठंडई का नहीं इसमें सारा दोष |

 

रंग लगाने के लिए न मुहूर्त न काल ,

खुला निमंत्रण दे रहे साफ़ सुथरे गाल |

 

गलियाँ  मंदिर घाट सब होली में गुलज़ार ,

आज मसाने में सजा बाबा का दरबार |

 

कौन जोगीरा गा रहा सारा रारा राग ,

बाहर बाहर भींगना भीतर भीतर आग | 

 

                 || अभिनव अरुण ||

                      (29022012)

 

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on March 1, 2012 at 5:58pm
shri Wahid ji utsahvardhan ka shukriya !
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 1, 2012 at 12:11pm

फागुन की अल्हड़ता और मस्ती का सुन्दर चित्रण किया आपने माननीय 'अभिनव' जी|

कौन जोगीरा गा रहा सारा रारा राग ,

बाहर बाहर भींगना भीतर भीतर आग |

ये दोहा विशेष रूप से पसंद आया|

Comment by Abhinav Arun on March 1, 2012 at 9:42am
Abhar Adarniy Saurabh Shri ! & Happy Holi !!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 1, 2012 at 12:19am

गोरी फागुन रच रहा ये कैसा षडयन्त्र .. क्या सुन्दर पंक्ति है !!

इन नटखट दोहों पर मेरी हार्दिक बधाई लीजिये, अभिनव भाईजी.

Comment by Abhinav Arun on February 29, 2012 at 2:28pm
Ashutosh ji dhanyavaad aur rangparv ki hardik mangal kamnayen
Comment by Abhinav Arun on February 29, 2012 at 10:28am
 बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी और हाँ :-) होली की अग्रिम  शुभकामनाएं !!

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